बसंत पंचमी का महत्व इन हिंदी ब संत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इसे सरस्वती पूजा के रूप में भी जाना जाता है। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है। यह ऋतु प्रकृति के नवजीवन और उल्लास का प्रतीक है। खेतों में सरसों के पीले फूल, आम के पेड़ों पर बौर और मधुर हवाएं बसंत के आगमन की सूचना देती हैं। सरस्वती पूजा के दिन विद्यार्थी, कलाकार और बुद्धिजीवी मां सरस्वती की आराधना करते हैं। माना जाता है कि मां सरस्वती की कृपा से ही ज्ञान, विवेक और बुद्धि की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और वाद्ययंत्रों की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को पीले फूल, माला और वस्त्रों से सजाया जाता है। पीला रंग बसंत ऋतु और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस दिन पीले वस्त्र पहनने और पीले व्यंजन बनाने की परंपरा है। बसंत पंचमी का महत्व केव...
प्रयाग कुंभ मेला 2025: विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम स न 2025 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला एक बार फिर विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह मेला न केवल भारत बल्कि दुनिया के विभिन्न कोनों से आए लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और संस्कृति का एक विशाल संगम रहा। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर लगने वाला यह मेला हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है। कुंभ मेला का इतिहास बेहद प्राचीन है। मान्यता है कि देवता और दानवों के बीच अमृत के कलश को पाने के लिए जो युद्ध हुआ था, उस दौरान चारों दिशाओं में अमृत की कुछ बूंदें गिर गई थीं। इन बूंदों के गिरने के स्थानों पर ही कुंभ मेला लगता है। प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन ये चार स्थान हैं जहां कुंभ मेला आयोजित होता है। 2025 का कुंभ मेला क्यों था खास? सन 2025 का कुंभ मेला कई मायनों में खास था। इस मेले में लाखों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और संगम में डुबकी लगाई। मेले के दौरान कई धार्मिक आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन-कीर्तन हुए। श्रद्धालुओं ने विभिन्न संतों और महात्माओं के दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया। कुंभ मेले का महत्व क...