बदलाव का ये गीत सुनो हर पल में नया जीत चुनो
वक्त की सैर पर चलते कदम,
पुराने बंधनों का टूटता जड़म,
समाज की गलियों में उभरता स्वर,
बदलाव का सूरज, उगता है अब हर।
कभी थी चुप्पी, दबा हर गला,
जाति-धर्म का बंधन था भला,
ऊंच-नीच की दीवारें खड़ी,
इंसानियत की थी सदा हार बड़ी।
हर मन में जागा है नया सुख,
स्त्री उठ खड़ी, आसमान छूने,
सपनों के पंख अब वो बुनने।
नहीं अब वो दिन, जब चूल्हे तक सीम,
वो अब लिखती है अपनी नई थीम,
पढ़ती, बढ़ती, बनती है मिसाल,
हर कदम पर तोड़ती बंधन का जाल।
युवा मन में अब आग सुलगती,
नई सोच की लहरें उमड़ती,
नहीं बर्दाश्त अब अन्याय कोई,
हक की पुकार, हर गली में सोई।
दलित, पिछड़ा, हर वंचित स्वर,
अब मांग रहा है सम्मान का घर,
कंधे से कंधा, चलते हैं साथ,
बराबरी का सपना, बनता है माथ।
प्रेम की राहें भी बदलीं अब,
नहीं बंधता वो जाति के सबब,
दिल से दिल का रिश्ता जोड़ा,
पुराने रिवाजों को ठोकर मरोड़ा।
टेक्नोलॉजी ने दी नई उड़ान,
हर कोने में फैला ज्ञान का सम्मान,
गांव-शहर की दूरी मिटाई,
एक दुनिया की तस्वीर बनाई।
पर हर बदलाव की अपनी कीमत,
कभी टकराव, कभी मन की पीड़ा कट,
पुरानी सोच की जड़ें गहरी,
नए बीजों को चुनौती भारी।
फिर भी नहीं रुकता ये कारवां,
हर कदम पर बनता नया इंसान,
संस्कृति, परंपरा, और नवाचार,
मिलकर बनाएं जीवन का आधार।
प्रकृति के साथ अब चलना सीखो,
सामाजिक बदलाव में उसे भी जीखो,
हरा भविष्य, साफ आसमान,
सबके लिए हो जीवन समान।
ऐ समाज, तू अब जाग जरा,
हर इंसान का सम्मान कर सदा,
नहीं अब रंग, न धर्म की खाई,
बस प्यार और भाईचारे की लहर बगाई।
बदलाव का ये गीत सुनो,
हर पल में नया जीत चुनो,
सामाजिक क्रांति का दीप जले,
हर दिल में इंसानियत का मेल बले।
नोट: यह कविता सामाजिक बदलाव के विभिन्न पहलुओं जैसे लैंगिक समानता, जातिगत भेदभाव का अंत, प्रेम की स्वतंत्रता, और पर्यावरण के प्रति जागरूकता को छूती है।