पंख लगा दो मेरे
पंख लगा दो मेरे मै भी उड़ जाऊंगी,
कभी सूरज तो कभी चांद तक पहुंच जाऊंगी,
पंख लगा दो मेरे मैं पंछी बन जाऊंगी,
चहचहाते हुए फिर सबका मन बहलाऊंगी,
मै बगिया में जाकर फूलों पर मंडराऊँगी,
घर-आंगन को खुशियों से भर जाऊंगी,
लगा दो पंख मेरे मै भी उड़ जाऊंगी॥
- कुमारी महेश्वरी
लमचूला, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
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मैं होती तितली अगर
कपकोट, उत्तराखंड
काश मैं होती तितली अगर,
जहाँ मन चाहा उड़ जाती,
जो मन चाहता वो कर पाती,
हर फूल पर बैठ कर,
उससे बाते मैं कर पाती,
तितली के रंग मुझे हैं भाते,
ना जाने इतने रंग कहां से आते,
मेरी पहचान भी एक रंग से होती,
मेरी दुनिया भी रंग बिरंगी होती,
काश मैं अगर तितली होती।।
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जानते है हम अपनी ज़िंदगी को
बबीता
उम्र-11
सैलानी, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
जानते है हम अपनी ज़िंदगी को,
क्या बदल सकते है हम,
सीखेंगे हम सब कुछ,
बनकर दिखाएंगे बहुत कुछ,
मत डालो हम पर ज्यादा दबाव,
नहीं तो हम हो जायेगें परेशान,
दिमाग से निकाल दो उन लोगों को,
जिन्होंने उठाई है उँगलियाँ आप पर,
वो तो हमेशा बोलते रहेंगे,
और हम अपना काम करते रहेंगे,
क्योंकि हम जानते हैं अपनी ज़िंदगी को॥
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जीवन के रंग
श्रुति जोशी
बैसानी, उत्तराखंड
खुद को न माना किसी से कम,
दुनिया के एक कोने में हैं हम,
न डर है न कोई शर्म,
लिखना तो मैं बहुत कुछ चाहूं,
पर लिख न पाऊँ मैं सच,
अरे फिक्र भी तो हैं सबकी,
चाहे छोड़ना पड़ जाए दम,
दुनिया से अनजान रहकर भी,
जुड़े हैं उन मधुर गीतों के संग,
उसे मैं चहचहाना कहूँ,
या कहूँ कुछ और,
या चलती रहे उन हवाओं के संग,
जिसने पकड़ा है हर छोर एक रंग,
लिखती हूं उस जल की धारा में
जो है निर्मल और सब रंग।।
