तुलसीदास की जीवनी | Tulsidas Biography in Hindi
तुलसीदास रामभक्ति शाखा के सगुणोपासक कवि थे। इनका जन्म स० 1554 में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म-स्थान सोरों (एटा) मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण जन्म के ही समय इनके माता- पिता ने इनको त्याग दिया था। इनका विवाह रत्नावली के साथ हुआ था। ऐसा प्रसिद्ध है कि रत्नावली के उपदेश से ही इनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ । इनका जीवन काशी, अयोध्या और चित्रकूट में अधिक व्यतीत हुआ। इनकी मृत्यु सं० 1680 में काशी में अस्सी घाट पर हुई। इनके गुरु नरहयनन्द थे । उन्हीं से इन्होंने रामायण की कथा सुनी थी। काशी के विद्वान पण्डित शेष सनातन से इन्होंने शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किया ।
तुलसीदास की रचनाएँ
ये राम के भक्त थे । इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। सम्वत् 1631 में इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'रामचरितमानस' की रचना आरम्भ की। इनके इस ग्रंथ में विस्तार के साथ राम के चरित्र का वर्णन है। तुलसी के राम में शक्ति, शील और सौन्दर्य तीनों गुणों का अपूर्व सामंजस्य है। मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया है। 'रामचरितमानस' बड़ा ही लोकप्रिय ग्रंथ है । विश्व-साहित्य के प्रमुख ग्रंथों में इसकी गणना की जाती है । 'रामचरितमानस' के अतिरिक्त उन्होंने 'जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, रामलला नहछू, रामाशाप्रश्न, वरवेरामायण, दोहावली, कवितावली, गीतावली तथा विनय- पत्रिका' आदि ग्रंथों की रचना की।
इनकी रचनाओं में भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण चित्रण देखने को मिलता है। 'रामचरितमानस' आज भी देश की जनता को आदर्श जीवन के निर्माण की प्रेरणा प्रदान करता है।
अपने समय तक प्रचलित दोहा, चौपाई, कवित्त सर्वया, पद आदि काव्य- शेलियों में तुलसी ने पूर्ण सफलता के साथ काव्य रचना की है। इनके काव्य में भाव- पक्ष के साथ कला-पक्ष की भी पूर्णता है। उसमें सभी रसों का आनन्द प्राप्त होता है। स्वाभाविक रूप में सभी प्रकार के अलंकारों का प्रयोग तुलसी ने अपनी रचनाओं में किया है। 'कवितावली, गीतावली, विनय-पत्रिका' आदि रचनाएँ ब्रजभाषा में हैं और 'रामचरितमानस' अवधी में। अवधी को साहित्यिक रूप प्रदान करने के लिए इन्होंने संस्कृत के शब्दों का भी प्रयोग किया है पर इससे कहीं भी दुरूहता नहीं आने पायौ है। इनके काव्य के कलापक्ष की पूर्णता को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि तुलसीदास संस्कृत भाषा के साथ-साथ काव्य-शास्त्र के भी पण्डित थे।
तुलसीदास का काव्य
तुलसी का काव्य सम्पूर्ण रसों से परिपूर्ण है
शृङ्गार रस -
राम को रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं ।
याते सबै मुधि भूलि गई, कर टेकि रहीं पल टारत नाहीं ।
बहुरि बदन बधु आँचल ढाँकी,
पिय तन चित्ते भौंह करि बाँकी ।
खंजन मंजु तिरीछे नेननि,
निज पति कहेउ तिन्हहि सिय सेननि।
हास्य रस
जप तप कछु न होहिं तेहि काला,
हे विधि मिले कवन विधि वाला ।
वीर रस
जो तुम्हार अनुशासन पाऊँ कन्दुक इव ब्रह्मांड उठाऊँ
शान्त रस-मन पछिते हैं अवसर बीते ।
तुलसी के काव्य में विविध प्रकार की काव्य-शैलियाँ मिलती हैं।
उदाहरण के लिए देखिये-
वीर गाथा काल की छप्पय-पद्धति-
कतहुँ विटप भूधर उपारि कर सेन बरक्खत ।
कतहुँ वाजि से वाजि मदिं गजराज बरक्खत ॥
विद्यापति और सूर की गौत पद्धति :
जे पे हौं मातु मते मह ह हौं ।
तो जननी जग में या मुख की कहाँ कालिमा ध्वहीँ ॥
गंग की सर्वया कवित्त पद्धति :-
राम को रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं ।
याते सबै सुधि भूल गई कर टेकि रहीं पल टारत नाहीं।
दोहा - चौपाई की प्रबन्ध पद्धति :-
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी, किये तिलक गुन गन बस करनी ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि तुलसी में रचना-कौशल, प्रबन्धपटुता और भाव प्रवणता आदि सभी गुणों का समाहार है। तुलसी की कला ने कागज के पन्नों को तुलसीदास की तरह बना दिया है। कहा भी गया है-
हिन्दी के काव्य सरोवर में तुम हे मानस के राजहंस ।
पानी और पय में भेद किया सहकर भी छूने प्रलय डंक ।
उस गौरव गरिमा से ही तो गुञ्जित है अब भी धरा-धाम ।
तुलसी हुलसी के पूत तुम्हें शत्-शत् प्रणाम शत्-शत् प्रणाम ।
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के सबसे महान कवियों में से एक हैं। उनकी रचनाओं ने न केवल हिंदी भाषा को समृद्ध किया है, बल्कि भारतीय संस्कृति और दर्शन को भी गहराई से प्रभावित किया है। आज भी उनकी रचनाएँ प्रासंगिक हैं और लाखों लोगों को प्रेरणा देती हैं।
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