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जुलाई, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

किसी भी समस्या का समाधान कैसे करें

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किसी भी समस्या का समाधान कैसे करें जी वन में समस्याएँ आना स्वाभाविक है। चाहे वो छोटी-मोटी परेशानी हो या बड़ी चुनौती, हर समस्या का समाधान होता है। बस जरूरत होती है एक व्यवस्थित दृष्टिकोण की। आइए जानते हैं कि किसी भी समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है। समस्या की पहचान स्पष्टता: सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि समस्या क्या है। इसे स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करें। कारण: समस्या के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश करें। यह समस्या के मूल तक पहुंचने में मदद करेगा। परिणाम: अगर समस्या का समाधान नहीं किया गया तो क्या परिणाम होंगे? इस पर विचार करना भी महत्वपूर्ण है। समाधान के विकल्प ब्रेनस्टॉर्मिंग: जितने अधिक से अधिक समाधानों के बारे में सोचें उतना बेहतर। विश्लेषण: प्रत्येक विकल्प के फायदे और नुकसान का विश्लेषण करें। तुलना: सभी विकल्पों की तुलना करके सबसे अच्छा विकल्प चुनें। समाधान का क्रियान्वयन योजना बनाएं: एक विस्तृत योजना बनाएं जिसमें समय सीमा, संसाधन और जिम्मेदारी शामिल हो। कार्यवाही करें: योजना के अनुसार कार्य करना शुरू करें। लचीलापन: अगर योजना के अनुसार चीजें नहीं चल रही हैं तो ल...

आज भी दिव्यांग किसी न किसी रूप में उपेक्षित हो जाते हैं

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विकास की दौड़ में पीछे छूटते दिव्यांग आ ज के समय में छोटी से छोटी गलियां, मोहल्ले, गांव और शहर विकसित हो रहे हैं. इसके लिए सरकार की ओर से अनेकों योजनाएं भी चलाई जा रही हैं ताकि इसका लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले और सभी नागरिक समान रूप से विकसित भारत का हिस्सा बन सकें. इस बार के केंद्रीय बजट में भी इसका विशेष ध्यान रखा गया है. सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं के बजट में पिछले साल की तुलना में इस वर्ष वृद्धि की है. लेकिन इसके बावजूद हमारे समाज में दिव्यांग एक ऐसा वर्ग है जिसकी अन्य वर्गों की तुलना में अधिक उपेक्षा हो जाती है. अक्सर विकास का खाका तैयार करते समय इस वर्ग को भुला दिया जाता है. जबकि इन्हें सबसे अधिक सहायता और योजनाओं की आवश्यकता होती है. केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि देश के शहरी क्षेत्रों विशेषकर स्लम बस्तियों में रहने वाले दिव्यांगों को भी जीवन में प्रतिदिन कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इन्हीं में एक बघेरा मोहल्ला नाम से आबाद स्लम बस्ती भी है, जहां रहने वाले कई दिव्यांगों के लिए जीवन मुश्किलों से भरा होता है. जो केंद्र और राज्य सरकार द्वारा इनके हितों म...

भक्ति योग मोक्ष और मुक्ति दिलाने वाला

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भक्ति पुरुष अंत काले भ क्ति योग मोक्ष और मुक्ति दिलाने वाला स्वच्छ वातावरण में भक्ति की जाने वाली प्रेम आशा आनंद प्रेम भावना लाने वाला सकारात्मक ऊर्जा की पूर्ति करने वाला।।  चिंता तनाव बेचैनी काम करवाने वाला एकाग्रता धैर्य  व दृढ़ता को बढ़ाने वाला निरंतर अभ्यास से आनंद मिलने वाला ईस्टअनुराग आंतरिक विकास देने वाला।।  खुद को साधना नियंत्रित करने वाला शारीरिक मानसिक स्वच्छता बढ़ाने वाला कुविचारों कुसंस्कार से दूर ले जाने वाला प्राणायाम प्राणवायु नियंत्रित करने वाला।।  संस्कृत में इच्छित फल प्राप्त करने वाला मंत्र साधना आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदाता वाला योगी इसे नाडीशोधन प्राणायाम बताने वाले अनुलोम विलोम 72ह.नाडी शुद्ध करने वाला।।  इसलिए- प्रयाण काले मनसा$ चलेन।  भक्त्या युक्तो योग बलेन चैव।।  भूर्वोर्मध्ये प्राण भावेष्य सम्यक स तं परं पुरुषभुपैति दिव्यम्।   अर्थात वह भक्ति युक्त पुरुष अंतकाल आने पर योग बल से भृकुटियों के मध्य  प्राण को प्रतिष्ठित करके अचल मन से स्मरण करता हुआ दिव्य परम पुरुष को प्राप्त हो जाता है।  - सुख मंगल सिंह

महान क्रांतिकारी अनाथ बालक ऊधम सिंह

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महान क्रांतिकारी अनाथ बालक ऊधम सिंह वो तिथि तेरह अप्रैल उन्नीस सौ उन्नीस ईस्वी, गोरों के गुलाम भारत की एक मनहूस घड़ी थी! जब कायर अंग्रेज जनरल रेजीनॉल्ड ए डायर ने पंजाब गवर्नर माइकल ओ ड्वायर के आर्डर पर, रालेट एक्ट में गिरफ्तार नेताओं के समर्थन हेतु जलियांवालाबाग में बैठक करती निहत्थी भीड़ पे, अंधाधुंध सोलह सौ पचास राउंड गोलियां फायर करके तीन सौ पचास भारतीयों का किया संहार! जो अंग्रेजों के ताबूत में आखिरी कील बन ठुकी, जिससे सशस्त्र युवा क्रांतिवीरों का हुआ अवतार! बारह वर्षीय भगतसिंह,तेरह के चन्द्रशेखर आजाद, उन्नीस के ऊधमसिंह,बाईस के बिस्मिल रामप्रसाद कूद पड़े आजादी के महासागर में कफन बांधकर, जलियांवाला बाग की खून सनी मिट्टी को छूकर! अनाथालय में पल रहे एक अनाथ शिशु शेर सिंह, जो एक वर्ष में हुए मातृहीन, सात में पितृविहीन! कोई सम्बन्धी नहीं अनाथ बालकों के मददगार, मुक्ता सिंह,शेर सिंह दो भाई चले गए अनाथघर, अनाथालय ने बड़े को साधु, छोटे को ऊधम सिंह, पिता तेहाल सिंह लिखा पता पंजाब सुनाम,संगरुर! जन्मतिथि छब्बीस दिसंबर अठारह सौ निन्यानबे, इकत्तीस जुलाई उन्नीस सौ चालीस ई में शहीद हुए! सत्तरह वर...

स्लम बस्तियों में पानी की गंभीर समस्या

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स्लम बस्तियों में पानी की गंभीर समस्या पू रे राजस्थान में मानसून लगभग सक्रिय हो चुका है. अब तक 190 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है. हालांकि यह सामान्य से दो एमएम कम है. लेकिन गर्मी के कारण सूख चुके राज्य के कई जलाशय अब तक लबालब भर चुके हैं. जो न केवल कृषि के लिए फायदेमंद साबित होता है बल्कि राज्य के कई स्थानों में इससे पीने के पानी की समस्या भी दूर हो जाती है. लेकिन कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां सालों भर लोगों को पीने के साफ़ पानी के लिए संघर्ष करनी पड़ती है. इनमें अधिकतर शहरी क्षेत्रों में आबाद स्लम बस्तियां होती हैं, जहां मूलभूत सुविधाओं के साथ साथ पीने के साफ पानी की सबसे बड़ी समस्या होती है. इन क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को रोज़ाना पानी के लिए भागदौड़ करनी पड़ती है. चूंकि ज़्यादातर ऐसी बस्तियां सरकारी भूमि अथवा अनधिकृत ज़मीनों पर आबाद होती हैं इसलिए सरकार और प्रशासन द्वारा भी इन्हें यह सुविधाएं उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाता है. इन बस्तियों में आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर परिवार के लोग रहते हैं जिनके लिए प्रतिदिन पानी खरीद कर पीना भी मुमकिन नहीं है. राजस्थान की राजधानी जयपुर स्थित कच्ची (स्लम) ब...

नायक नायिका में एक दूसरे के प्रति वफादारी हैं!

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ये सारी जीवात्मा न तो नर है और नहीं नारी है इ स प्रकृति प्रदत्त धरा धाम के पवित्र रंगमंच पर  ये सारी जीवात्मा न तो नर है और नहीं नारी है मगर इन सबकी अलग-अलग अपनी अदाकारी है! कोई माता पिता कोई पति पत्नी कोई बहन भाई  कोई पुत्र पुत्री सभी एक दूसरे के पूरक जीवधारी है ये जल-थल-नभचर जीव त्रियर्क योनि चेतनाधारी है! ये नाते रिश्तेदार संगी साथी का तन पाकर आते ये ईश्वरीय लीला खेला है कि यहाँ सभी किरदार  नायक नायिका में एक दूसरे के प्रति वफादारी हैं!   ये अजीब खासियत है जीव जगत और प्रकृति की कि कोई नहीं यहाँ खलनायक कोई नहीं संहारी है  सबको प्रिय अपनी जान,जान बचाना जिम्मेवारी है! माता-पिता, पति-पत्नी ये संसार की युगल जोड़ी है  और भाई-बहन पुत्र-पुत्री एकात्म आत्मवत एक कड़ी है सब आत्मा आपस में सहयोगी ना छोटी नहीं बड़ी है!   जिसे आस्तिक हिन्दू सिख आर्यसमाजी आत्मा कहते  उसे नास्तिक आजीवक चार्वाक बौद्ध जैन चेतना कहते पंचभौतिक तत्वों के आपसी सुमेल से बने जीव देह ही  मनुज का भगवान है,भगवान देह से अलग नहीं होते! काया से अलग आत्मा ही बार-बार शरीर धारण करती  ...

तुलसी | हिन्दी कहानी

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तुलसी ड लकू अपने घर के आंगन में बैठा हुआ है। डलकू खेतों को निहार रहा है। अभी खेतों को गेहूं की फसल बोने के लिए जोता गया है। जोतने से खेतों की भुरभूरी हुई मिट्टी डलकू के हृदय को आनंदविभोर कर रही है। डलकू के पास सोलह बीघा जमीन है। वहीं डलकू के कुछ चचेरे भाईयों के पास अस्सी - नब्बे बीघा जमीन है। डलकू को अक्सर अपने चचेरे भाइयों से इस बात के लिए जलन हुआ करती थी। लेकिन अभी डलकू के मन में जलन को कोई जगह नहीं मिल रही थी क्योंकि सारा मन खेतों की भूर-भूरी मिट्टी को देखकर आनंदविभोर हो रहा था। तभी 60-65 वर्ष का बुड्ढा आंगन में आता है। वह डलकू को देखकर मुस्कराता है। बुड्ढे की लंबी लटकी सफेद दाढ़ी और लंबे - लंबे सफेद और काले बाल डलकू को डरावने लगते हैं। तभी बुड्ढा डलकू के पिता का नाम लेकर कहता है कि क्या यह उन्ही का घर है। डलकू हां में सिर हिलाता है। बुड्ढा उनके बारे में पूछता है कि वे कहां पर हैं। डलकू कहता है कि वे घर पर नहीं है। तभी उनकी बातचीत सुनकर डलकू की मां रसोई से बाहर आ जाती है। वह बुड्ढे को नमस्कार कर उसके पांव छूती है।वह बुड्ढे को चाय के लिए पूछती है। लेकिन बुड्ढा फिर कभी कहकर, डलकू के त...

5G के जमाने में भी नेटवर्क की कमी

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5G के जमाने में भी नेटवर्क की कमी बै ठी अंदर मैं, जमाना आगे बढ़ गया, खिड़की से देखा बाहर तो 5G आ गया, न जाने कितने गांवों को ये समस्या सता रही, ऑनलाइन हो गया है जीवन का सारा काम, मगर गांव में नेटवर्क का नहीं है कोई नाम, सिग्नल के लिए चल पड़े जंगल की ओर, वहां जानवर भी हंस पड़े, देख कर हमारी ओर, आधा अधूरा काम किए, डर कर फिर घर दिए, एक खंभा यहां भी गढ़वा दो ना, गांव में नेटवर्क हमे भी दिला दो ना, सुना है डिजिटल लाया सुविधा हजार, लैपटॉप में भी सुविधाओं की बहार , अब तो हम भी सीखना चाहेंगे, दिन चौगुनी और हर बार हजार।। - महिमा जोशी कपकोट, उत्तराखंड

बुनियादी सुविधाओं से पीछे क्यों रह जाती हैं स्लम बस्तियां?

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बुनियादी सुविधाओं से पीछे क्यों रह जाती हैं स्लम बस्तियां? आ ज भी हमलोग को यहां पीने का पानी भरने के लिए सुबह सुबह नल पर लाइन लगाना पड़ता है. अगर ज़रा देर हो जाती है तो अपना नंबर आते आते पानी चला जाता है. अगर किसी दिन सुबह बिजली चली गई तो फिर पानी मिलना मुश्किल हो जाता है. सारा दिन काम छोड़कर पानी के जुगाड़ में लगे रहते हैं. पहले की अपेक्षा अभी कुछ सालों में बस्ती में विकास का काम तो हुआ है, लेकिन बिजली और पानी की समस्या स्थाई रूप से बनी हुई है." यह कहना है पटना शहर के बीच आबाद स्लम बस्ती अदालतगंज स्थित ईख कॉलोनी की रहने वाली 45 वर्षीय रेखा देवी का. रेखा के पति पटना जंक्शन पर गन्ने का जूस बेचने का काम करते हैं. वह अपने पति, दो बेटों और एक बेटी के साथ पिछले 18 साल से इस स्लम बस्ती में रह रही है. बेटे जहां गन्ने की दुकान पर पिता का हाथ बटाते हैं, वहीं रेखा बस्ती के बगल में स्थित ऑफिसर्स कॉलोनी के कुछ घरों में सहायिका के रूप में काम करती है. पटना सचिवालय और पटना जंक्शन से कुछ ही दूरी पर स्थित इस स्लम बस्ती की आबादी लगभग एक हजार के आसपास है. जहां करीब 60 प्रतिशत ओबीसी और 20 प्रतिशत अल्पसं...

आओ नवयुग का आरंभ करते हैं

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नवयुग का आरंभ दे श का गर्व ,चुनाव का पर्व  लोकतंत्र का गर्व , लोगों का पर्व  आज देश में चुनाव आया है , चुनाव लोकतंत्र का साया है , लोगों में स्वंतत्रता का उन्माद छाया है , देके जीवन का बलिदान लोकतंत्र पाया है | जनता आत्मा और चुनावी दल लोकतंत्र की काया है | जान की जगह गोविंद गद्दी पर जा बैठा , जनता का सेवक जनता का मालिक बन बैठा | लोकतंत्र में हुआ ऐसा , मुद्दों की जगह चुनाव में छाया पैसा, नेता हो कैसा , ऐसा या वैसा , यह तय करेगा पैसा | रजवारों और राजनीतिक घरानों ने लोकतंत्र को कब्ज़ा लिया , जनता का वोट खरीद लिया , जनता ने खूब शराब पीया , जनता ने स्वयं ही बुझाया लोकतंत्र का दीया | आओ नवयुग का आरंभ करते हैं , लोकतंत्र से रजवारों और राजनीतिक घरानों को ख़त्म करते हैं | - विनय कुमार,  सहायक हिन्दी प्रोफेसर  हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश

Ghosts Are Real

Ghost I t was two o'clock in the night. Jalpu was coming back to his home from Delhi. Jalpu gets down at Cholthara by a bus from Delhi-Sarkaghat route. Jalpu's house is in Thadu village. The Son river flows between Cholthara and Thadu. There is a very dense forest in this area. This forest is known as 'Baga Ra Naal'. Leopards are seen roaming in the forest by the villagers even during the day. Jalpu starts walking from Cholthara towards Thadu. A little further ahead he sees Bhalku standing on the way. Jalpu calls out to Bhalku. Bhalku ignores Jalpu. Both start walking together. Jalpu lights a beedi. Jalpu starts offering a beedi to Bhalku too, but Bhalku moves away. Both reach near the village. Bhalku stops behind. Jalpu asks him to walk with him. But Bhalku keeps standing behind. After waiting for a while, Jalpu goes to his house. He hears a loud sound behind him. As if Lhasa(landslide) has fallen.  Jalpu reaches his house. Jalpu tells his mother that Bhalku was also w...

खारे पानी की समस्या से जूझते ग्रामीण इलाके

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राजस्थान : खारे पानी की समस्या से जूझते ग्रामीण इलाके दे श के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी मानसून प्रवेश कर चुका है. राज्य के कई ज़िलों में मानसूनी बारिश हो रही है. कहीं कहीं सामान्य से अधिक वर्षा हो चुकी है. राज्य मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार एक जून से 20 जुलाई तक पूरे राजस्थान में सामान्य से लगभग साढ़े तीन प्रतिशत अधिक बारिश हो चुकी है. यकीनन मानसून की यह बारिश राजस्थान के लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि देश के अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान सबसे अधिक गर्मी का प्रकोप झेलता है. इस दौरान राज्य में पानी की सबसे बड़ी समस्या उभर कर सामने आती है. विशेषकर राज्य के ग्रामीण क्षेत्र इससे बहुत अधिक प्रभावित होते हैं. राजस्थान के कई ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां लोगों को खारा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ता है. एक तरफ प्रचंड गर्मी का कहर, तो दूसरी ओर खारा पानी उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है. न केवल इंसान बल्कि जानवर भी खारा पानी पीकर बीमार हो जाते हैं. इस समस्या से जूझ रहे राज्य के कई ग्रामीण इलाकों की तरह करणीसर गांव भी इसका उदाहरण है. ब्लॉक मुख्यालय लूणकरणसर से करीब 35 किम...

बागरिया समुदाय में शिक्षा और रोजगार का घोर अभाव है

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शहरी गरीबी क्षेत्र में भी रोजगार जरूरी है पि छले हफ्ते राजस्थान सरकार ने 2024-25 का अपना बजट पेश किया. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की नई सरकार का यह पहला पूर्णकालिक बजट है. इसमें अगले पांच वर्षों की रूपरेखा के आधार पर नौकरी और आजीविका समेत अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है. बजट में अगले पांच साल में सरकारी और निजी क्षेत्र में करीब दस लाख नई नौकरियां देने की घोषणा की गई है. दरअसल राजस्थान देश के उन पांच राज्यों में शामिल है जहां बेरोजगारी दर बहुत अधिक है. केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के मुताबिक राजस्थान में इस समय बेरोजगारी की दर करीब 20.6 फीसदी है. न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहर में रहने वाले स्लम बस्तियों में भी आजीविका के बहुत कम साधन उपलब्ध हैं. आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहद कमजोर परिवारों के पास आजीविका के नाम पर मौसमी रोजगार उपलब्ध होते हैं. राजस्थान के कई ऐसे शहरी क्षेत्र हैं जहां आबाद स्लम बस्तियों में लोगों के पास रोजगार नहीं है. इन्हीं में एक राजधानी जयपुर स्थित बाबा रामदेव नगर स्लम बस्ती है. ज...

वो तस्वीर यादों की पुरानी कुछ इस कदर

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ख़्वाबों की तस्वीर वो तस्वीर यादों की पुरानी कुछ इस कदर  ज़हन में आ गई, आज रज-रज के फिर  हमें बेशुमार रूला गई, धूल में लिपटी यादों की धुंध आज फिर  उड़ने सी लगी फ़िजाओं में वो तस्वीर यादों की पुरानी फिर ताजा हो गई, अल्फ़ाज पुराने कुछ कानों में हमारे फिर  गूंजने लगे, वो सर्द हवा के झोंखे आज फिर हमें सता रहे, वो तस्वीर यादों की नजर के  सामने हमारे आज फिर उभरने लगी, कुछ दबे से जख़्म यादों के फिर ताजा  होने को हैं,  फिर आज अश्क़ हमारे आँखों से फिर  छलकने को हैं,  वो टूटे ख़्वाब की तस्वीर की याद आज  फिर उभर गई - तरुणा शर्मा तरु मेरठ उत्तर प्रदेश 

रविवार को आराम का दिन कैसे बनाएं?

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रविवार: आराम और रिचार्ज का दिन आ ज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहां हम लगातार काम करते रहते हैं, रविवार का दिन हमारे लिए एक महत्वपूर्ण अवकाश प्रदान करता है। यह एक ऐसा दिन है जब हम थकान से उबर सकते हैं, तनाव कम कर सकते हैं, और अपने प्रियजनों के साथ समय बिता सकते हैं। रविवार को आराम का दिन क्यों बनाना ज़रूरी है? शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए: हफ्ते भर काम करने से हमारा शरीर और मन थक जाता है। रविवार को आराम करने से हमें थकान मिटाने और ऊर्जा रिचार्ज करने का मौका मिलता है। तनाव कम करने के लिए: काम का तनाव हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। रविवार को आराम करने से हमें तनाव कम करने और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए: अगर हम रविवार को आराम करते हैं तो सोमवार को हम अधिक ऊर्जावान और उत्पादक महसूस करते हैं। परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए: रविवार हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का मौका देता है। यह हमारे रिश्तों को मजबूत बनाने और खुश रहने में मदद करता है। शौक और रुचियों के लिए समय निकालने के लिए: रविवार हमें...

स्लम बस्तियों को स्वच्छ भारत के नक्शे पर प्रमुखता से उभार सकते हैं

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स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां? दे श को स्वच्छ बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से केंद्र के स्तर पर लगातार प्रयास किये जाते रहे हैं. एक ओर जहां स्वच्छ भारत अभियान चलाया जाता है वहीं दूसरी ओर राज्य के साथ साथ शहरी स्तर पर भी स्वच्छता सर्वेक्षण कराये जा रहे हैं. जिसमें देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया जाता है. इसमें देश के सबसे साफ़ शहर को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया जाता है. स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 की अखिल भारतीय रैंकिंग में बिहार को 27 राज्यों में 15वां स्थान मिला है. वहीं इस सर्वेक्षण में बिहार के 142 शहर शामिल हुए थे. इस बार के सर्वेक्षण में राजधानी पटना ने अपनी स्थिति को सुधारा अवश्य है लेकिन अब भी वह टॉप 10 की सूची से बहुत दूर है. एक लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों में पटना की ऑल इंडिया रैंकिंग 77 रही. यह सर्वेक्षण बताता है कि एक राजधानी के तौर पर पटना को स्वच्छता की दिशा में अभी और कई महत्वपूर्ण कदम उठाने बाकी हैं. दरअसल पटना के कुछ इलाके अभी भी ऐसे हैं जहां आज भी साफ़-सफाई बहुत अधिक नज़र नहीं आती है. इन्हीं में एक अद...

आज भी कंप्यूटर की पहुंच से दूर हैं ग्रामीण किशोरियां

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आज भी कंप्यूटर की पहुंच से दूर हैं ग्रामीण किशोरियां आ ज का समय कंप्यूटर का है. हमें हर छोटे बड़े हर काम के लिए कंप्यूटर की दुकान पर जाना पड़ता है. फोन से हम सब काम कर सकते हैं. लेकिन परीक्षा का फार्म भरना हो या उससे संबंधित जानकारियां प्राप्त करनी हो, तो उसके लिए शहर के कंप्यूटर सेंटर पर जाना पड़ता है. जो गांव से 16-17 किमी दूर है. ऐसा कभी नहीं हुआ है कि एक बार जाने से ही हमारा काम हो गया हो. एक तो आने जाने का खर्च और दूसरा कंप्यूटर सेंटर वाले की मनमानी फीस अदा करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. हमारे माता पिता की आमदनी इतनी नहीं है कि हम बार बार शहर जा सके. यदि गांव में ही कंप्यूटर सेंटर होता तो बार बार शहर जाकर पैसे खर्च नहीं करने पड़ते." यह कहना है उत्तराखंड के पिंगलो गांव की 21 वर्षीय गुंजन का, जो स्नातक की छात्रा है और पढ़ाई के साथ साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी कर रही है. दरअसल, कंप्यूटर ने न केवल इंसान के काम को तेज़ और आसान बना दिया है बल्कि इसने दुनिया में विकास की परिभाषा को बदल कर रख दिया है. भारत भी कंप्यूटर के माध्यम से दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बना चुक...

रचनाकार के अधिवेशन में होगा देश भर के कई साहित्यकारों का संगम

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रचनाकार के अधिवेशन में होगा देश भर के कई साहित्यकारों का संगम को लकाता। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्था रचनाकार,जो शुक्तिका इंडिया फाउंडेशन का एक प्रकल्प है, उसके प्रचार मंत्री रावेल पुष्प ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि संस्था अपना चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन  भारतीय भाषा परिषद के सभागार में 21 जुलाई 2024 को करने जा रही है । आयोजन का उद्घाटन महामहिम राज्यपाल, पश्चिम बंगाल द्वारा होने जा रहा है। सात लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों को सम्मानित किया जायेगा। समारोह में पूरे भारतवर्ष से तकरीबन 30 साहित्यकार सम्मिलित हो रहे हैं जिनमे प्रमुख नाम हैं: नई दिल्ली से श्री लक्ष्मीनारायण भाला, श्री सुरेश नीरव ,श्री विजय स्वर्णकार, श्रीमती माधुरी स्वर्णकार, गुरुग्राम से श्री राजेश प्रभाकर, बंगलुरु से डॉ इंदु झुनझुनवाला, श्री ज्ञानचन्द मर्मज्ञ, पटना से श्री रत्नेश्वर सिंह, श्रीमती रूबी भूषण, रामधारी सिंह दिनकर के पौत्र श्री अरविंद सिंह, भोपाल से श्री गीतेश्वर बाबू घायल, नीमच से श्रीमती वन्दना योगी, श्री प्रमोद रामावत, कटनी से श्री सुभाष सिंह, मेरठ से डॉ जितेंद्र कुमार, वडोदरा से श्रीमती राख...

स्लम बस्तियों की महिलाएं भी कुपोषण मुक्त जीवन गुजार सकें

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क्यों कुपोषित रह जाती हैं स्लम बस्तियों की महिलाएं ? इ स वर्ष के शुरुआत में भारत की सबसे बड़ी बैंक एसबीआई ने नवीनतम घरेलू उपभोग सर्वेक्षण के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की. जिसमें यह बताया गया है कि देश के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में पहले की तुलना में गरीबी में कमी आई है. रिपोर्ट के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2011-12 में गरीबी 25.7 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में मात्र 7.2 प्रतिशत रह गई है. इसी अवधि के दौरान शहरी गरीबी में भी कमी दर्ज की गई है, जो 13.7 प्रतिशत की तुलना में घटकर 4.6 प्रतिशत हो गई. इस रिपोर्ट से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ होगा. इसका लाभ उनके बच्चों और महिलाओं को हो रहा होगा जिन्हें कम आमदनी के कारण पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है और वह कुपोषण का शिकार हो जाते हैं. लेकिन वास्तविकता इससे कुछ दूर है. अभी भी देश के कई ऐसे शहरी इलाके हैं, जहां रहने वाले गरीब परिवार की महिलाएं और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. राजस्थान की राजधानी जयपुर स्थित कच्ची (स्लम) बस्ती 'रावण की मंडी' इस...

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