तुलसी | हिन्दी कहानी
तुलसी
डलकू अपने घर के आंगन में बैठा हुआ है। डलकू खेतों को निहार रहा है। अभी खेतों को गेहूं की फसल बोने के लिए जोता गया है। जोतने से खेतों की भुरभूरी हुई मिट्टी डलकू के हृदय को आनंदविभोर कर रही है। डलकू के पास सोलह बीघा जमीन है। वहीं डलकू के कुछ चचेरे भाईयों के पास अस्सी - नब्बे बीघा जमीन है। डलकू को अक्सर अपने चचेरे भाइयों से इस बात के लिए जलन हुआ करती थी। लेकिन अभी डलकू के मन में जलन को कोई जगह नहीं मिल रही थी क्योंकि सारा मन खेतों की भूर-भूरी मिट्टी को देखकर आनंदविभोर हो रहा था। तभी 60-65 वर्ष का बुड्ढा आंगन में आता है। वह डलकू को देखकर मुस्कराता है। बुड्ढे की लंबी लटकी सफेद दाढ़ी और लंबे - लंबे सफेद और काले बाल डलकू को डरावने लगते हैं। तभी बुड्ढा डलकू के पिता का नाम लेकर कहता है कि क्या यह उन्ही का घर है। डलकू हां में सिर हिलाता है। बुड्ढा उनके बारे में पूछता है कि वे कहां पर हैं। डलकू कहता है कि वे घर पर नहीं है। तभी उनकी बातचीत सुनकर डलकू की मां रसोई से बाहर आ जाती है। वह बुड्ढे को नमस्कार कर उसके पांव छूती है।वह बुड्ढे को चाय के लिए पूछती है। लेकिन बुड्ढा फिर कभी कहकर, डलकू के ताऊ का नाम लेकर, उनके घर जाने की बात कर चला जाता है। डलकू अपनी मां से बुड्ढे के बारे में पूछता है। डलकू की मां बताती है कि बुड्ढे का नाम तुलसी है। वह उसके पिता का चचेरा भाई है। रात को डलकू के पिता घर लौट आते हैं।
डलकू की मां उन्हें पीने के लिए पानी देती है। वह उन्हें बताती है कि आज तुलसी गांव आया था। डलकू अपने पिता से तुलसी के बारे में पूछता है। डलकू के पिता डलकू को तुलसी की दुःखभरी कहानी सुनाते हैं। तुलसी के पिता की मौत उसके जन्म से तीन महीने बाद हो गई थी। उसके दादा - दादी पहले ही स्वर्ग सिधार गए थे। उसकी मां ने अकेले ही उसका लालन-पोषण किया। लेकिन दुर्भाग्य ने तुलसी का पीछा नहीं छोड़ा। जब वह नौ वर्ष का था तो उसकी मां का भी देहांत हो गया। अब तुलसी इस दुनिया में अकेला रह गया था। व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग होता है। जिस तरह वह समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है, समाज भी उसके प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है। गांव के लोग तुलसी की देखभाल और लालन-पोषण के संदर्भ में बैठक करते हैं।बैठक में यह तय होता है कि उसकी टोली के परिवार एक - एक महीना करके उसकी देखभाल करेंगे। तुलसी दिन में बाकी चचेरे भाईयों के साथ पढ़ाई के लिए विद्यालय जाता और फिर उनके साथ बकरियां चराता। सभी तुलसी को अपने बेटे की तरह स्नेह देते थे। लेकिन दुर्भाग्य ने अभी तक तुलसी का पीछा नहीं छोड़ा था।
तुलसी का फूफा उसकी जमीन पर नजरें गढ़ाए बैठा था। लेकिन गांव वालों के होते वह उसकी जमीन पर नाजायज कब्जा नहीं कर सकता था। उसने षड्यंत्र से काम करने का निर्णय किया। वह अक्सर तुलसी के पास आता और उससे स्नेह भरी बातें करता। वह तुलसी के चाचों और ताऊओं से बहुत सम्मान देकर बात करता। वह तुलसी को बहला-फुसलाकर अपने साथ अपने घर रहने के लिए ले जाता है। किसी को भी उसके षड्यंत्र की भनक नहीं लगती। वह तुलसी को वहां पर पीटा करता था और खाने के लिए भी एक वक्त रोटी देता था। तुलसी ने वहां से भागकर कई बार वापिस गांव आने की कोशिश की। लेकिन फूफा ने अपने कुछ गांव वालों को पैसे का प्रलोभन देकर अपने षड्यंत्र में शामिल कर रखा था। वे तुलसी को गांव की तरफ भागने नहीं देते थे। वे उसे पीट कर वापिस फूफा के घर छोड़ देते थे। एक दिन तुलसी गांव की उल्टी दिशा में भागा। यही तो उसका फूफा चाहता था। तुलसी के भागने के बाद उसकी जमीन की मालकिन उसकी बुआ थी। फूफा अपने षड्यंत्र में सफल हो चुका था। उसने तुलसी की जमीन बेचने के नीलामी लगवाई। तुलसी के ताऊओं ने वह जमीन दोगुनी कीमत में खरीद ली और अपनी टोली की जमीन टोली से बाहर नहीं जाने दी। तुलसी साधुओं की टोली में शामिल हो गया और पीछली जिंदगी भूल गया। चालीस वर्ष बाद एक साधु गांव में भिक्षा मांगने आया तो एक बुढ़िया ने उसे पहचान लिया की ये तो तुलसी है। उसके बाद से तुलसी अपने चचेरे भाईयों से मिलने कभी-कभी आता रहता है और वे भी अपने भाई का दिल खोल कर स्वागत करते हैं।
- विनय कुमार
सहायक हिन्दी प्रोफेसर
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें