आओ नवयुग का आरंभ करते हैं
नवयुग का आरंभ
देश का गर्व ,चुनाव का पर्व
लोकतंत्र का गर्व , लोगों का पर्व
चुनाव लोकतंत्र का साया है ,
लोगों में स्वंतत्रता का उन्माद छाया है ,
देके जीवन का बलिदान लोकतंत्र पाया है |
जनता आत्मा और चुनावी दल लोकतंत्र की काया है |
जान की जगह गोविंद गद्दी पर जा बैठा ,
जनता का सेवक जनता का मालिक बन बैठा |
लोकतंत्र में हुआ ऐसा ,
मुद्दों की जगह चुनाव में छाया पैसा,
नेता हो कैसा , ऐसा या वैसा ,
यह तय करेगा पैसा |
रजवारों और राजनीतिक घरानों ने लोकतंत्र को कब्ज़ा लिया ,
जनता का वोट खरीद लिया ,
जनता ने खूब शराब पीया ,
जनता ने स्वयं ही बुझाया लोकतंत्र का दीया |
आओ नवयुग का आरंभ करते हैं ,
लोकतंत्र से रजवारों और राजनीतिक घरानों को ख़त्म करते हैं |
- विनय कुमार,
सहायक हिन्दी प्रोफेसर
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश
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