स्वतंत्रता दिवस पर वीर रस की कविता
भारत की पवित्र माटी में, जहाँ सूरज स्वर्णिम किरण बिखेरता है,
वहाँ स्वतंत्रता का दीप जला, जब वीरों ने बलिदान का प्रण लेता है।
उनके हृदय में ज्वाला धधकती, जो गुलामी की बेड़ी जलाने को थी,
उनके रक्त में थी ललकार, जो अत्याचार के पहाड़ ढहाने को थी।
तब बस्ती-बस्ती में गूँजी थी, आजादी की हुंकार प्रचंड स्फूर्ति थी।
भगत सिंह की वह क्रांति-ज्योति, जो बम बन फटी थी अंधेरे में,
चंद्रशेखर की वह गर्जना, जो गूँजी थी दिल्ली के मेले में।
रानी लक्ष्मीबाई की तलवार, जो झाँसी के रण में चमक उठी,
उसकी हर चोट में बस्ती थी, भारत माँ की आन जो लहक उठी।
सुभाष की वह पुकार अटल, “तुम मुझे खून दो, मैं आजादी दूँगा”,
उस आवाज में था बल, जो हर हिंदुस्तानी का दिल जीत ले गया।
लाल किले की प्राचीर से, जब तिरंगा फहराता है आकाश छूकर,
हर लहर में गूँजता है, उन शहीदों का बलिदान जो न मिटेगा कभी डूबकर।
गाँधी का अहिंसा-मार्ग, जो सत्य की ताकत से शत्रु को झुकाया,
और तिलक का वह नारा, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार” जो गूँज उठा साया।
हिमालय की गोद से लेकर, सागर की लहरों तक फैला है गीत,
हर मिट्टी में बस्ता है, उन वीरों का रक्त और बलिदान की रीत।
वे लड़े न धन के लिए, न यश के लिए, न किसी स्वार्थ के वश में,
उनका एकमात्र सपना था, भारत को स्वतंत्र देखना हर कण में।
आज जब हम आजादी का पर्व मनाते हैं, झूमते हैं उत्साह में,
उन वीरों की कुर्बानी को, न भूलें जो दी हमें इस साहस में।
स्वतंत्रता दिवस का यह पावन दिन, हमें सिखाता है जीने का मोल,
हर साँस में बस्ता है, उन शहीदों का अटल, अडिग, अमर बोल।
आओ, प्रण करें इस पवित्र दिन, उनके सपनों को साकार करेंगे,
भारत को विश्व का सिरमौर बनाएँ, एकता और शक्ति से सँवारेंगे।
जय हिंद! जय भारत! नमन उन वीरों को, जिनके कारण यह आजादी है,
उनके बलिदान का ऋण चुकाएँ, एक भारत जो सदा सशक्त, सदा वीर है।
