बारिश के रंग | हिन्दी कहानी

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बारिश के रंग


मेघा एक छोटे से बुक कैफे की मालकिन थी, जो कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट में बनी थी। उसका कैफे, "पन्नों की बारिश", किताबों और कॉफी के शौकीनों के लिए एक ठिकाना था। मेघा को पुरानी किताबों की खुशबू से प्यार था, और वह हर किताब में एक नई दुनिया ढूँढती थी। उसकी ज़िंदगी सादी थी, लेकिन उसका दिल कहानियों और सपनों से भरा था। वह चाहती थी कि उसका कैफे न सिर्फ किताबों का घर हो, बल्कि उन लोगों का भी, जो अपने दिल की बात कहने से डरते हैं।

बारिश के रंग
आदित्य एक युवा लेखक था, जो अपनी पहली किताब लिखने के लिए कोलकाता आया था। वह शहर की जीवंतता और उसकी पुरानी गलियों से प्रेरणा लेना चाहता था। लेकिन लेखक के जीवन की तरह, उसका मन भी उलझनों से भरा था। वह अपनी किताब के लिए सही शुरुआत नहीं ढूँढ पा रहा था, और उसका आत्मविश्वास डगमगा रहा था। एक दोपहर, जब कोलकाता की सड़कों पर बारिश की बूँदें ताल बजा रही थीं, आदित्य ने बारिश से बचने के लिए मेघा के कैफे में शरण ली।कैफे में घुसते ही किताबों की खुशबू और कॉफी की गर्माहट ने उसे सुकून दिया। मेघा काउंटर पर बैठी थी, एक पुरानी बांग्ला किताब पढ़ते हुए। आदित्य ने एक कॉफी ऑर्डर की और अपनी नोटबुक खोलकर कुछ लिखने की कोशिश की। लेकिन बार-बार उसकी नज़र मेघा पर जा रही थी, जो किताब में खोई थी। उसने हिम्मत जुटाकर बात शुरू की, “ये कौन सी किताब है? आप इतने ध्यान से पढ़ रही हैं।”

मेघा ने मुस्कुराकर किताब दिखाई—रबींद्रनाथ टैगोर की "गोरा"। “ये किताब मेरी फेवरेट है। हर बार पढ़ने पर कुछ नया सिखाती है,” उसने कहा। आदित्य ने अपनी परेशानी साझा की कि वह एक लेखक है, लेकिन उसकी कहानी शुरू ही नहीं हो पा रही। मेघा ने हँसते हुए कहा, “कहानियाँ लिखने से पहले जीनी पड़ती हैं। शायद कोलकाता की गलियों में तुम्हारी कहानी इंतज़ार कर रही हो।”उस दिन के बाद, आदित्य रोज़ कैफे आने लगा। वह मेघा से किताबों, कविताओं और ज़िंदगी के बारे में बातें करता। मेघा उसे कोलकाता की अनजानी जगहों पर ले जाती—कुम्हारटोली की मूर्तियों के बीच, विक्टोरिया मेमोरियल के बगीचों में, और गंगा के किनारे। आदित्य को मेघा की सादगी और उसकी बातों में छिपा गहरा दर्शन पसंद था। मेघा को आदित्य की संवेदनशीलता और उसकी आँखों में छिपा सपना आकर्षित करता था। धीरे-धीरे, उनकी दोस्ती में प्यार का रंग घुलने लगा।

एक शाम, हावड़ा ब्रिज के पास, जब बारिश की हल्की फुहारें पड़ रही थीं, आदित्य ने मेघा से अपने दिल की बात कही। “मेघा, तुम मेरी कहानी की वो शुरुआत हो, जिसे मैं ढूँढ रहा था। तुम बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है।” मेघा ने शरमाते हुए उसका हाथ थामा और कहा, “आदित्य, तुम मेरी किताब का वो पन्ना हो, जो मैं बार-बार पढ़ना चाहती हूँ।”लेकिन उनकी राह में मुश्किलें थीं। मेघा का परिवार चाहता था कि वह एक “सेटल्ड” लड़के से शादी करे, जो उनके पारंपरिक व्यापार को संभाले। आदित्य, जो अभी अपनी किताब की दुनिया में संघर्ष कर रहा था, उनके लिए “अनसेटल्ड” था। मेघा के पिता ने उसे साफ मना कर दिया। दूसरी ओर, आदित्य को भी अपने प्रकाशक से दबाव था कि वह जल्दी किताब पूरी करे, वरना उसका करियर खतरे में पड़ सकता था।

मेघा और आदित्य ने फैसला किया कि वे अपने प्यार और सपनों को एक मौका देंगे। मेघा ने अपने कैफे को और बड़ा करने का फैसला किया, ताकि वह अपने परिवार को यह दिखा सके कि वह अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जी सकती है। आदित्य ने रात-दिन मेहनत करके अपनी किताब पूरी की, जो मेघा और कोलकाता की गलियों से प्रेरित थी। किताब का नाम था “बारिश के रंग”। जब किताब छपी, तो उसकी सफलता ने सबको चौंका दिया। यह एक बेस्टसेलर बन गई, और आदित्य को आलोचकों की वाहवाही मिली।

मेघा के परिवार ने भी, आखिरकार, आदित्य को स्वीकार कर लिया। मेघा का कैफे अब कोलकाता के साहित्यिक हलकों में मशहूर हो गया था, जहाँ लेखक, कवि और सपने देखने वाले इकट्ठा होते थे। मेघा और आदित्य ने अपने प्यार को एक नया नाम दिया—वे साथ में कैफे चलाते, जहाँ मेघा किताबों की दुनिया संभालती और आदित्य नई कहानियाँ लिखता।हर बारिश में, जब वे हावड़ा ब्रिज के पास टहलते, आदित्य मेघा का हाथ थामकर कहता, “तुम मेरी वो कहानी हो, जो कभी खत्म नहीं होगी।” और मेघा मुस्कुराकर जवाब देती, “और तुम मेरी वो किताब हो, जिसका हर पन्ना मेरे दिल को छूता है।” उनकी प्रेम कहानी कोलकाता की बारिश, किताबों की सुगंध और गंगा की लहरों में हमेशा ज़िंदा रहेगी।

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