कृष्ण जन्माष्टमी पर कविता

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कृष्ण जन्माष्टमी पर कविता


नंद के आंगन में उत्सव सजा,  
कन्हैया का जन्म हुआ, जग मगमगा।  
मथुरा की रजनी में चंद्र सुहाना,  
देवकी के लाल ने लिया अवतार न्यारा।  

कंस के कारागार में बंधन टूटे,  
वासुदेव की गोद में कन्हा जागे।  
यमुना की लहरें बनीं पथ की सखी,  
नन्हे कृष्ण को ले चले नंद की नगरी।  

गोकुल में बंसी की तान बजी,  
माखन चोर की लीला सजी।  
गोपियों के मन में प्रेम उमड़ा,  
कान्हा का रूप देख सबका मन लुभा।  

कृष्ण जन्माष्टमी पर कविता
राधा के संग रास रचाया,  
वृंदावन में प्रेम बरसाया।  
गोवर्धन पर्वत उंगली पर उठाया,  
इंद्र का अभिमान चूर-चूर करवाया।  

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व है प्यारा,  
भक्ति का रंग, आनंद का नजारा।  
मुरलीधर की महिमा गाए जग सारा,  
कान्हा के चरणों में मन हमारा।  

दही-हांडी की टोली सजती,  
माखन-मिश्री की थाली बनती।  
भक्तों के दिल में कृष्ण बसे,  
हर घर में उनकी कथा सजे।  

हे कृष्ण, तुम नटखट, तुम न्यारे,  
दीन-दुखियों के संकट हारे।  
जन्माष्टमी पर तुझको नमन,  
तेरे चरणों में अर्पित जीवन।



विस्तार :
यह कविता श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व को समर्पित है, जिसमें उनके जन्म, लीलाओं, और भक्ति के रंग को चित्रित किया गया है। कविता में मथुरा के कारागार से लेकर गोकुल-वृंदावन की लीलाओं तक का चित्रण है, जो कृष्ण के बाल-रूप, माखन चोरी, रासलीला, और गोवर्धन लीला जैसे प्रसंगों को समेटता है। साथ ही, यह जन्माष्टमी के उत्सव, दही-हांडी, और भक्ति के आधुनिक उत्साह को भी दर्शाता है। अंत में, यह कविता कृष्ण के प्रति भक्ति और समर्पण का भाव व्यक्त करती है, जो हर भक्त के हृदय में बसता है।

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