क्या आत्मनिर्भर भारत सिर्फ एक नारा है या एक ठोस नीति?
आत्मनिर्भर भारत' का नारा 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पेश किया गया, जिसे भारत को आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी रूप से स्वावलंबी बनाने के दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह नारा केवल एक शब्दावली नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक व्यापक नीतिगत ढांचा भी है, जिसके तहत सरकार ने कई योजनाएं और सुधार लागू किए हैं। हालांकि, इसकी सफलता और वास्तविक प्रभाव को लेकर बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग इसे एक प्रेरक दृष्टिकोण मानते हैं, जो भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत करने का लक्ष्य रखता है, जबकि अन्य इसे केवल एक आकर्षक नारा मानते हैं, जिसके पीछे ठोस परिणामों की कमी है। इस विषय पर गहराई से विचार करने के लिए हमें इसके दोनों पक्षों को तटस्थता से देखना होगा।
आत्मनिर्भर भारत: एक ठोस नीति के पक्ष में
'आत्मनिर्भर भारत' को एक नीति के रूप में देखें तो यह केवल शब्दों तक सीमित नहीं है। सरकार ने इसके तहत कई ठोस कदम उठाए हैं, जो इसे एक व्यवहारिक दृष्टिकोण बनाते हैं। सबसे पहले, आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई, जो कोविड-19 महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को पुनर्जनन देने का प्रयास था। इस पैकेज में छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए ऋण गारंटी योजनाएं, किसानों के लिए कृषि सुधार, और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने जैसे कदम शामिल थे। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और डिजिटल इंडिया जैसी पहलें आत्मनिर्भर भारत की नींव को मजबूत करती हैं, जो स्वदेशी विनिर्माण और नवाचार को प्रोत्साहित करती हैं।
उदाहरण के लिए, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) को कई क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, और ऑटोमोबाइल में लागू किया गया है। इसका उद्देश्य भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनाना और निर्यात को बढ़ावा देना है। मोबाइल फोन निर्माण में भारत की प्रगति इसका एक ठोस उदाहरण है। कुछ साल पहले भारत मोबाइल फोन आयात पर निर्भर था, लेकिन आज कई कंपनियां जैसे सैमसंग और ऐप्पल भारत में अपने उत्पाद बना रही हैं, जिससे रोजगार सृजन और विदेशी मुद्रा की बचत हो रही है।
इसके अलावा, रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना भी आत्मनिर्भर भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्वदेशी हथियारों और उपकरणों, जैसे तेजस लड़ाकू विमान और अर्जुन टैंक, के विकास को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने कई रक्षा उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध भी लगाया है। यह न केवल आर्थिक स्वावलंबन को बढ़ाता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूत करता है।
आत्मनिर्भर भारत का एक और महत्वपूर्ण पहलू है ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास, जैसे सड़क, बिजली, और इंटरनेट कनेक्टिविटी, के साथ-साथ किसानों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और फसल बीमा जैसी योजनाएं लागू की गई हैं। ये कदम ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं। साथ ही, शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देकर युवाओं को स्वरोजगार और उद्यमिता के लिए तैयार किया जा रहा है।
आत्मनिर्भर भारत: केवल एक नारा?
दूसरी ओर, कई आलोचक मानते हैं कि 'आत्मनिर्भर भारत' एक आकर्षक नारा तो है, लेकिन इसकी धरातल पर प्रभावशीलता सीमित है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह अभियान वास्तव में भारत को आत्मनिर्भर बना रहा है, या यह केवल मौजूदा योजनाओं को नए नाम के तहत पेश करने का प्रयास है। मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं पहले से मौजूद थीं, और आत्मनिर्भर भारत का अधिकांश ढांचा इन्हीं पुरानी योजनाओं का विस्तार प्रतीत होता है। ऐसे में, क्या यह वास्तव में एक नई नीति है, या केवल एक नया नारा?
आलोचकों का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य बहुत व्यापक और अस्पष्ट है। स्वावलंबन का अर्थ क्या है? क्या यह आयात को पूरी तरह समाप्त करना है, या केवल कुछ क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है? वैश्वीकरण के युग में पूर्ण आत्मनिर्भरता संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी देश पूरी तरह से आयात पर निर्भरता खत्म नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, भारत अभी भी तेल, प्राकृतिक गैस, और कई महत्वपूर्ण कच्चे माल के लिए विदेशों पर निर्भर है। आत्मनिर्भर भारत के तहत इस निर्भरता को कम करने के लिए कोई स्पष्ट रणनीति सामने नहीं आई है।
इसके अलावा, कई नीतियों के कार्यान्वयन में कमी देखी गई है। MSMEs के लिए घोषित ऋण योजनाओं का लाभ छोटे उद्यमियों तक पूरी तरह नहीं पहुंचा है, क्योंकि बैंकों की जटिल प्रक्रियाएं और ब्याज दरें उनके लिए बाधा बनी हुई हैं। कृषि सुधारों को लेकर भी किसानों में असंतोष रहा है, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि ये सुधार बड़े कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं, न कि छोटे किसानों को।
रोजगार सृजन एक और बड़ा मुद्दा है। आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य रोजगार बढ़ाना भी है, लेकिन बेरोजगारी दर अभी भी उच्च बनी हुई है। औद्योगिक विकास के बावजूद, असंगठित क्षेत्र, जो भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है, अभी भी उपेक्षित है। कोविड-19 के बाद प्रवासी मजदूरों की समस्याओं ने यह दिखाया कि आत्मनिर्भर भारत का लाभ समाज के सबसे निचले तबके तक नहीं पहुंच रहा है।
निष्कर्ष की ओर
'आत्मनिर्भर भारत' को केवल नारा कहना या इसे एक पूर्ण नीति मानना, दोनों ही अतिवादी दृष्टिकोण होंगे। सच्चाई इसके बीच में कहीं है। यह नारा निश्चित रूप से प्रेरणादायक है और लोगों में स्वदेशी उत्पादों के प्रति गर्व की भावना जगाता है। साथ ही, सरकार ने इसके तहत कई ठोस कदम उठाए हैं, जैसे PLI योजना, रक्षा स्वदेशीकरण, और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार। हालांकि, इन नीतियों का प्रभाव पूरे देश में एकसमान नहीं है, और कार्यान्वयन में कई कमियां दिखती हैं।
वास्तव में आत्मनिर्भर भारत को सफल बनाने के लिए और अधिक स्पष्टता, समन्वय, और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह केवल आर्थिक स्वावलंबन तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना चाहिए। अगर सरकार इन कमियों को दूर कर पाए और समाज के हर वर्ग को इस अभियान से जोड़ पाए, तो 'आत्मनिर्भर भारत' केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सशक्त नीति बन सकता है। दूसरी ओर, अगर यह केवल प्रचार और आंशिक प्रयासों तक सीमित रहा, तो यह एक खोखले नारे से ज्यादा कुछ नहीं होगा। इस बहस का कोई एक सही जवाब नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम आत्मनिर्भरता को कैसे परिभाषित करते हैं और सरकार इसे लागू करने में कितनी गंभीरता दिखाती है।