चुनाव आयोग की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए इसका महत्व
लोकतंत्र के लिए इसका महत्वभारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव ही लोकतंत्र की आत्मा हैं। चुनावों की इस पवित्रता को बनाए रखने का दायित्व भारत के चुनाव आयोग पर है। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता न केवल एक संवैधानिक प्रावधान है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है। यदि चुनाव आयोग पर सरकार या किसी राजनीतिक दल का दबाव रहा, तो चुनावों की विश्वसनीयता समाप्त हो जाएगी और जनता का विश्वास लोकतंत्र से उठ जाएगा। इसलिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए जीवन रेखा के समान है।संविधान निर्माताओं ने बहुत दूरदर्शिता से चुनाव आयोग को स्वतंत्र संस्था के रूप में स्थापित किया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संसद, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन चुनाव आयोग के अधीक्षक, निदेशन और नियंत्रण में होगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया, उनकी सेवा शर्तें और कार्यकाल को इस प्रकार बनाया गया है कि वे किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त रहें। मुख्य चुनाव आयुक्त को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान सुरक्षा प्राप्त है – उन्हें हटाना अत्यंत कठिन है। यह व्यवस्था इसीलिए की गई ताकि सत्ताधारी दल चुनाव आयोग को अपने इशारे पर नचाने में असफल रहे।इतिहास गवाह है कि जब-जब चुनाव आयोग ने अपनी स्वतंत्रता का परिचय दिया है, तब-तब भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ है। टी. एन. शेषन के समय में चुनाव आयोग ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई। आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करना, मतदाता सूची की सफाई, फोटोयुक्त पहचान पत्र की शुरुआत और धनबल व बाहुबल पर अंकुश – ये सभी कदम चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के कारण ही संभव हो पाए। उसके बाद सुकुमार सेन, जे. एम. लिंगदोह, एस. वाई. कुरैशी जैसे मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी कभी सत्ता के सामने झुकने से इनकार किया। ये उदाहरण सिद्ध करते हैं कि एक स्वतंत्र चुनाव आयोग ही लोकतंत्र को जीवंत रख सकता है।चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के बिना क्या होगा, इसका अंदाजा हम पड़ोसी देशों के उदाहरणों से लगा सकते हैं।कई देशों में सत्ताधारी दल चुनाव आयोग को अपने नियंत्रण में रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप चुनाव केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाते हैं। मतदाता भय, धन और धांधली के बीच अपना मत देने को मजबूर होते हैं। भारत में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है, क्योंकि हमारा चुनाव आयोग संवैधानिक रूप से मजबूत और स्वतंत्र है। यही कारण है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक उत्सव – भारतीय आम चुनाव – बिना किसी बड़े विवाद के संपन्न होता रहा है।हाल के वर्षों में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर कुछ चिंताएँ उठी हैं। पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की समिति होती थी, परंतु नए कानून के बाद इसमें परिवर्तन हुआ है। कई लोग इसे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर खतरे के रूप में देखते हैं। यदि नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार का वर्चस्व बढ़ेगा, तो भविष्य में चुनाव आयोग पर दबाव बनाना आसान हो सकता है। इसलिए आवश्यक है कि नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया जाए, ताकि केवल योग्यता और सत्यनिष्ठा के आधार पर व्यक्ति चुनाव आयोग में आए।
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता केवल उसके सदस्यों की नियुक्ति और सुरक्षा तक सीमित नहीं है। इसके लिए वित्तीय स्वतंत्रता भी आवश्यक है। वर्तमान में चुनाव आयोग का बजट संसद से पारित होता है और उसे सरकार के माध्यम से मिलता है। कई बार सरकार बजट में कटौती या देरी करके अप्रत्यक्ष दबाव बना सकती है। इसलिए चुनाव आयोग को संवैधानिक रूप से वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए, जैसे कि उच्चतम न्यायालय और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को प्राप्त है। इसी प्रकार कर्मचारियों की नियुक्ति और अनुशासनिक नियंत्रण भी पूरी तरह चुनाव आयोग के पास होना चाहिए, ताकि कोई बाहरी हस्तक्षेप न हो।आज डिजिटल युग में ईवीएम, वीवीपैट, ऑनलाइन नामांकन, मतदाता जागरूकता अभियान जैसे नए प्रयोग हो रहे हैं। इन सबको सफलतापूर्वक लागू करने के लिए चुनाव आयोग को तकनीकी और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों में पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए। यदि कोई सरकार ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों को दबाने की कोशिश करे या सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों को नियंत्रित करने में आनाकानी करे, तो चुनाव आयोग की स्वतंत्रता ही उसे खुलकर कार्रवाई करने की शक्ति देती है।
अंत में कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है। यह स्वतंत्रता जितनी मजबूत होगी, उतना ही हमारा लोकतंत्र सुरक्षित और जीवंत रहेगा। जनता का विश्वास तभी कायम रहेगा जब उसे लगेगा कि उसका वोट पूरी तरह सुरक्षित और स्वतंत्र है। इसलिए हर नागरिक, हर राजनीतिक दल और हर सरकार का कर्तव्य है कि वह चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का सम्मान करे और उसे किसी भी प्रकार का दबाव बनाने से बचे। एक स्वतंत्र चुनाव आयोग ही यह गारंटी दे सकता है कि भारत सच्चे अर्थों में “जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए” शासन वाला देश बना रहे। यही लोकतंत्र की असली जीत होगी।
