शिक्षा और रोजगार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं
गांवों में शिक्षा और रोज़गार की चुनौती
जब भी हम देश में किसी इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं तो पहला ध्यान गांव की ओर जाता है. इसलिए केंद्र से लेकर सभी राज्यों की सरकार भी ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रख कर ही अपनी योजनाएं तैयार करती हैं. इस मामले में शिक्षा और रोज़गार सबसे महत्वपूर्ण विषय होता है. जो न केवल गांव बल्कि देश और समाज का भविष्य भी तैयार करता है. शिक्षा के मुद्दे पर स्कूल की बिल्डिंग, लैब की सुविधा, सभी विषयों के शिक्षकों की नियुक्ति और मिड डे मील की सुविधा के साथ साथ गांव से स्कूल की दूरी और लड़कियों की स्कूल तक आसान पहुंच अहम पहलू साबित होता है. यह वह मुख्य बिंदु होते हैं जो स्कूल में छात्रों की उपस्थिति और शिक्षा के प्रति उनके उत्साह को बढ़ाता है. वहीं शिक्षा के बाद रोज़गार हासिल करना एक ऐसी चुनौती है जिससे ग्रामीण युवा सबसे अधिक जूझ रहा है. राजस्थान का धुवालिया नाड़ा गांव भी इसका एक उदाहरण है जहां बच्चों को शिक्षा तो मिल रही है लेकिन युवा रोज़गार की तलाश में भटक रहा है.
इस संबंध में 10वीं में पढ़ने वाली 15 वर्षीय निशा कहती है कि मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. गांव से हम चार लड़कियां है जो अगले वर्ष दसवीं की परीक्षा देंगी. सभी विषयों के शिक्षक भी हमें पढ़ाने में रूचि रखते हैं. हालांकि हाई स्कूल गांव से दो किमी दूर है. जहां हमें प्रतिदिन जाना होता है. लेकिन आने जाने का रास्ता बहुत सुनसान है, इसलिए बहुत से अभिभावक अपनी लड़कियों को वहां भेजना नहीं चाहते हैं. वह हमारे माता-पिता पर हमें स्कूल नहीं भेजने का दबाव डालते हैं. लेकिन इसके बावजूद हम लड़कियां स्कूल जाती हैं. निशा कहती है कि शिक्षा प्राप्त कर वह भविष्य में डॉक्टर बनना चाहती है. लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखकर उसे अपना ख्वाब पूरा होते नज़र नहीं आता है. इसके बावजूद शिक्षा के प्रति उसके उत्साह में कोई कमी नहीं है. उसके साथ पढ़ने वाली रेखा कहती है कि गांव में लड़का और लड़की को पढ़ाने में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है. हालांकि हम लड़कियों को स्कूल जाने से पहले घर का सारा काम ख़त्म करना होता है. वहीं लड़कों के साथ ऐसी कोई बंदिश नहीं है. इसके बावजूद हमें ख़ुशी है कि हमें पढ़ने का अवसर मिल रहा है. रेखा का सपना शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक बनना है. वह कहती हैं कि मैं अक्सर घर का काम ख़त्म कर अपने छोटे भाई बहनों को पढ़ाती हूं.
पति के साथ दैनिक मज़दूरी कर परिवार का पेट चला रही 45 वर्षीय इंद्रा कहती हैं कि उन्होंने 8वीं तक पढ़ाई की है जबकि उनके पति केवल साक्षर हैं. शिक्षा के महत्व को समझते हुए वह अपने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना चाहती हैं. उनकी बड़ी बेटी शिखा 12वीं की छात्रा है, जबकि बेटा पवन और लखी 9वीं और 7वीं में पढ़ते हैं. इंद्रा कहती हैं कि आज के समय में मात्र शिक्षा ही विकास के द्वार तक पहुंचा सकता है. इसलिए वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहती हैं. लेकिन उच्च शिक्षा के लिए अधिक पैसों की ज़रूरत होती है. जो एक दैनिक मज़दूरी करने वाले परिवार के लिए संभव नहीं होगा. यदि बच्चों को छात्रवृत्ति मिले तो वह उन्हें आगे पढ़ने के लिए शहर भी भेजेंगी. वह कहती हैं कि अब गांव में बालिका शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है लेकिन अधिकतर परिवार की लड़कियां 12वीं से आगे इसलिए पढ़ नहीं पाती हैं क्योंकि इसके लिए उन्हें अजमेर शहर जाना होगा. जहां अभिभावक उन्हें अकेले भेजने को तैयार नहीं होते हैं. वह कहती हैं कि बहुत जल्द माता पिता की यह सोच भी बदल जाएगी और लड़कियां कॉलेज पढ़ने शहर जा सकेंगी, लेकिन इसके लिए जो पैसे खर्च होंगे उसकी व्यवस्था उनके लिए भारी पड़ती है.
गांव के 50 वर्षीय भंवर सिंह बताते हैं कि पहले की तुलना में अब धुवालिया नाड़ा गांव के अभिभावकों में शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है. वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. गांव में 3 से 18 वर्ष की उम्र के करीब 150 से अधिक बच्चे हैं. जो आंगनबाड़ी से लेकर उच्च विद्यालयों तक में पढ़ते हैं. हालांकि लड़कों की तुलना में लड़कियों को पढ़ाने के मामले में अभी भी लोग संकुचित सोच रखते हैं. लेकिन 10वीं और 12वीं में लड़कियों ने अच्छे नंबर लाकर बहुत सारे अभिभावकों को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया है. वह बताते हैं कि उनकी तीनों पोतियां भी स्कूल और कॉलेज जाती हैं. हालांकि कॉलेज के लिए उन्हें अजमेर शहर जाना पड़ता है. जहां तक पहुंचना अभी भी गांव में आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों की लड़कियों के लिए बहुत बड़ी बाधा है. यदि धुवालिया नाड़ा गांव के करीब ही कोई कॉलेज खुल जाए तो शायद परिस्थिति बदल सकती है. भंवर सिंह कहते हैं कि शिक्षा के बाद रोज़गार गांव के युवाओं के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है. अधिकतर नौजवान कॉलेज पढ़ने के बाद भी ढंग की नौकरी नहीं कर पा रहे हैं. घर की कमज़ोर आर्थिक स्थिति के कारण वह व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में दाखिला नहीं ले पाते हैं. वहीं सामान्य पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद उन्हें कोई रोज़गार नहीं मिल पाता है.
सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा धुवालिया नाडा राजस्थान के अजमेर जिला से 15 किमी दूर स्थित है. यह रसूलपुरा पंचायत का एक छोटा गांव है. जिसमें लगभग 100 घर हैं. जिसकी कुल आबादी 650 के आसपास है. जहां अनुसूचित जनजाति भील और रैगर समुदाय की बहुलता है. गांव के अधिकतर पुरुष मार्बल की फैक्ट्रियों में वर्कर के रूप में काम करते हैं. कुछ खेती और कुछ गृह निर्माण में दैनिक मज़दूर के रूप में जुड़े हुए हैं. कुछ पुरुष बेलदारी और कुछ पेंटिंग का काम करने प्रतिदिन अजमेर शहर जाते हैं. गांव के शुरू में ही कुछ घर मुस्लिम परिवारों के भी हैं. जिनकी अधिकतर जनरल स्टोर और अन्य ज़रूरी सामानों की दुकानें हैं. वहीं कुछ घरों के युवा रोड किनारे गाड़ी और मोटर बाइक रिपेरिंग कर रोज़गार चला रहे हैं. पशुपालन इस गांव की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. ग्रामीणों की आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसी से होता है. लगभग प्रत्येक परिवार गाय, भैंस अथवा बकरी पालन करता है. जिससे होने वाले दूध को सरस डेयरी में बेचा जाता है. इस काम में बड़ी संख्या में गांव की महिलाएं जुड़ी हुई हैं. वहीं यहां का युवा वर्ग शिक्षा के अनुरूप रोज़गार की तलाश में हैं.
इस संबंध में 22 वर्षीय ज़ैनब कहती हैं कि वह बीए पास हैं और कोई नौकरी कर परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती हैं. लेकिन केवल साधारण स्नातक स्तर पर कहीं भी रोज़गार उपलब्ध नहीं है. वह पिछले कई महीनों से प्राइवेट जॉब की तलाश भी कर रही हैं. लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है. वह बताती है कि उसकी बहन 8वीं पास है. पति की मृत्यु के बाद वह अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए नौकरी करना चाहती है लेकिन अभी तक ऐसा मुमकिन नहीं हो सका है. वहीं जागरूकता और अन्य कमियों की वजह से उन्हें सरकार द्वारा चलाई जा रही न तो किसी योजना की जानकारी है और न ही वह इसे प्राप्त करने की प्रक्रिया जानती हैं. ज़ैनब कहती है कि उसने पीएम जनधन योजना और स्वनिधि योजना का केवल विज्ञापन में नाम ही सुना है. इसे प्राप्त करने की प्रक्रिया उसे मालूम नहीं है. वह कहती है कि सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से यदि गांव में ही रहकर लड़कियों को रोज़गार मिल जाए तो न केवल वह सशक्त और आत्मनिर्भर बन सकती हैं बल्कि परिवार को आर्थिक रूप से सपोर्ट भी कर सकती हैं.
हमारे देश में सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को ध्यान में रखते हुए कई लाभकारी योजनाएं संचालित करती है, इनमें रोज़गार से जुड़ी कई योजनाएं भी होती हैं. लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि ग्रामीण इन कल्याणकारी योजनाओं का बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं. इसका एक कारण जहां संबंधित विभाग द्वारा जमीनी स्तर पर इन योजनाओं के प्रचार-प्रसार में कुछ कमी का रह जाना होता है, तो वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों का इस संबंध में पूर्ण रूप से जागरूक नहीं होना भी एक बड़ा कारण होता है. लेकिन जिन ग्रामीण क्षेत्रों की जनता सरकार की योजनाओं के प्रति जागरूक होती है, वह इसका भरपूर लाभ उठाती हैं और स्वयं में बदलाव लाने का प्रयास करती है. इसमें शिक्षा की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. जो जागरूकता का एक प्रमुख माध्यम बनता है. धीरे धीरे ही सही, धुवालिया नाड़ा में जिस प्रकार शिक्षा का रुझान बढ़ा है, रोज़गार की चुनौती का भी हल इसी से निकलेगा क्योंकि शिक्षा और रोज़गार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. (चरखा फीचर)
- हारून खान
अजमेर, राजस्थान
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