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बहुत ढूँढा उसे पूजा नमाज मंत्र अरदास और स्तुति में

बहुत ढूँढा उसे पूजा नमाज मंत्र अरदास और स्तुति में


हुत ढूँढा उसे पूजा नमाज मंत्र अरदास और स्तुति में
मगर वो नहीं मिला मंदिर मस्जिद और ईश्वर बंदगी में 
वो मिला रहमदिल व्यक्ति की सेवा और सहानुभूति में!

कौन कहता कि सातवें आसमान में बैठा है कोई खुदा? 
खुदा खुद में होता, धरा में माँ पिता होते धाता विधाता, 
माँ की कोख है ब्रह्मलोक पिता की गोद स्वर्गलोक सा!

बहुत ढूँढा उसे पूजा नमाज मंत्र अरदास और स्तुति में
अरे अहंकार के पुतले तुम सारे संस्कार क्यों भूल गए?
माता पिता मरकर उनकी आत्मा संतान में समा जाती, 
भाईयों में पिता प्रतिस्थापित होते बहनों में माता होती!

माँ की याद सताए तो अपनी बहन को याद किया करो,
पिता का स्पर्श चाहो तो अग्रज का चरण छू लिया करो, 
मृत पिता की स्मृति में अनुज का सिर चूम लिया करो! 

पुत्र पुत्री के रूप में पितामह-पितामही व नाना-नानी आते 
दादा-दादा कहके जो दिया था दाय में वही तो लेने आते 
नाती-नातिन नाना-नाना कहकर सिर्फ नाता निभाने आते!

मामा-मामा कहनेवाले तेरे भांजे कुछ भी मांगने नहीं आते 
जिसे तुमने आत्मवत बहन की माँ रुप में कुक्षि प्रदान की
वही एहसान जताने आते, कृष्ण बनो कंश क्यों बन जाते? 

तुम हर आयोजन में सत्य नारायण की कथा को सुनते 
मगर कभी भी अपने आत्मीयजन की व्यथा नहीं सुनते 
क्या तुम्हें ज्ञात नहीं त्रस्त जीवात्मा तुम्हारे पास रहते? 

माँ पिता के जाने के बाद भाई बहन के बीच बहाने होते 
भाई-भाई में खाई होती, एक दूसरे के लिए उलाहने होते 
राम को लखन नहीं मिलते, कृष्ण के बलराम नहीं होते!

अनुज ने अग्रज को पटक दिया, ये कैसा नाटक किया? 
छाती में भृगुलता उगा दी बित्ता भर जमीन दौलत मिला 
क्यों भूल गए उसे जिनका जूठा दूध पिया गोद में खेला? 

क्यों भूल गए कि एक माता की कोख में आगे पीछे आए 
एक पिता के दो रक्त बूंद हो, एक दूसरे के भाई हमसाये 
जाते-जाते क्या पाए? माँ का दूध लजाए पितृ रूह रुलाए!

जरा याद करो ठगी लूट कूट पराए को जो दौलत कमाते
वही तुम्हें भूत-प्रेत बनकर शांतिपूर्वक जीवन जीने ना देते 
मत अवहेलना करो जीव जंतु सगे संबंधी रिश्ते और नाते! 

मत ढूँढो उसे पूजा नमाज मंत्र जाप भजन और अरदास में 
स्वार्थी न बनो दिल से उनकी सहायता करो जो आसपास में 
प्यार सहकार पितृगुण, दया ममता मातृगुण हो अहसास में!

महसूस करो कि तुम एक संवेदनशील विवेकसम्पन्न प्राणी हो 
अपनों की समस्या में गर काम न आए तो तुम अभिमानी हो
संकल्प लो तुम्हारे आचरण व्यवहार से ना किसी को हानि हो!


-विनय कुमार विनायक 
दुमका,झारखंड-814101

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