गांव तक सड़क पहुंची मगर परिवहन की सुविधा नहीं

गांव तक सड़क पहुंची मगर परिवहन की सुविधा नहीं


मारे देश में पिछले कुछ दशकों में जिन बुनियादी ढांचों पर सबसे अधिक ज़ोर दिया गया है, उसमें सड़क प्रमुख है. वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के लांच होने के बाद से गांव के सड़कों की स्थिति में काफी सुधार आया है. इसका सीधा असर ग्रामीण जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलता था. हालांकि पीएमजीएसवाई योजना के अमल में आने के बाद से गांव की सड़कें उन्नत तो गई लेकिन कुछ गांवों में परिवहन की सुविधा की कमी के कारण ग्रामीणों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है. बिहार के प्रसिद्ध गया ज़िले का कैशापी पुरानी डिह गांव इसका एक उदाहरण है. जिला मुख्यालय से 32 किमी और डोभी प्रखंड से करीब 5 किमी दूर इस गांव की सड़क काफी उन्नत है, लेकिन परिवहन सुविधा की कमी के कारण गांव वालों को इसका कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा है. 

गांव तक सड़क पहुंची मगर परिवहन की सुविधा नहीं
इस संबंध में गांव की 35 वर्षीय पूनम पासवान बताती हैं कि "करीब 6 वर्ष पूर्व गांव की सड़क को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाया गया था. जिसके बाद गांव वालों को यह उम्मीद जगी थी कि यह गांव भी शहर से जुड़ जाएगा, लेकिन आज भी गांव में शहर जाने के लिए परिवहन सुविधा की काफी कमी है. जिससे लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इससे सबसे अधिक किशोरियों की शिक्षा प्रभावित हो रही है. जिन्हें कॉलेज जाने आने के लिए समय पर सवारी गाड़ी उपलब्ध नहीं हो पाता है." वहीं एक किशोरी सपना कुमारी बताती है कि 12 वीं के बाद उसे केवल इसलिए इग्नू जैसे दूरस्थ शिक्षा में एडमिशन करवाना पड़ा क्योंकि गांव से कॉलेज जाने के लिए समय पर कोई गाड़ी उपलब्ध नहीं होती है. गांव से सबसे नजदीक कॉलेज भी 8 किमी दूर है. लेकिन वहां तक जाने के लिए हर समय सवारी गाड़ी नहीं मिलती है. 

वह बताती है कि डोभी ब्लॉक से हर तीन घंटे पर एक छोटी बस शेरघाटी ब्लॉक मुख्यालय जाने के लिए निकलती है, जहां से फिर गया शहर जाने के लिए बस बदलनी पड़ती है. यदि एक बस छूट गई तो फिर अगले तीन घंटे तक दूसरी कोई सवारी गाड़ी उपलब्ध नहीं होती है. ऐसे में हमेशा क्लास छूटने का डर बना रहता. वह बताती है कि उसके पिता किसान हैं. खेती से इतनी आमदनी नहीं होती है कि वह कोई निजी वाहन खरीद सकें. ऐसे में उसे सवारी गाड़ी से ही कॉलेज आना जाना करनी पड़ती. इसीलिए परिस्थिति को देखते हुए उसने इग्नू से स्नातक करने का विकल्प चुना. सपना के अनुसार परिवहन की इस असुविधा के कारण ही गांव की अधिकतर लड़कियां या तो 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं या फिर दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अपना ग्रेजुएशन करती हैं. पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जाति बहुल इस गांव में 633 परिवार आबाद हैं. जिनकी कुल आबादी लगभग 3900 है. इनमें करीब 1600 अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग परिवार रहता है.

वहीं गांव के 32 वर्षीय संजीव दास बताते हैं कि यहां सड़क तो बहुत अच्छी बनी हुई है, लेकिन जब परिवहन की कमी के कारण इससे लोगों को असुविधा होती है तो उन्नत सड़क का अर्थ नहीं रह जाता है. गांव वालों को कहीं भी आने जाने के लिए घंटों वाहन का इंतज़ार करना पड़ता है. जिसके कारण मिनटों में पूरे होने वाले कामों में पूरा दिन गुज़र जाता है. अक्सर परिवारों को शहर जाने के लिए गाड़ी बुक करनी पड़ती है. जो काफी खर्चीला होता है. वह कहते हैं कि कैशापी पुरानी डिह में अधिकतर परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर है. ज़्यादातर पुरुष या तो सीमित मात्रा में उपलब्ध खेती किसानी करते हैं या फिर दिल्ली, कोलकाता, अमृतसर अथवा सूरत जाकर वहां के कल कारखानों में श्रमिक के रूप में काम करते हैं. ऐसे में उनके लिए हर समय निजी वाहन बुक करके कहीं आना जाना मुमकिन नहीं है. संजीव कहते हैं कि गया जिला मुख्यालय और रेलवे स्टेशन गांव से 32 किमी दूर है. वहां के लिए गांव से बहुत ही सीमित संख्या में बस उपलब्ध होती है. ऐसे में जब हम ऑटो बुक करते हैं तो वह दोगुना चार्ज करता है. जिसे अदा करने के लिए सभी सक्षम नहीं होते हैं. यदि परिवहन विभाग कैशापी पुरानी डिह से गया शहर के लिए बस सर्विस शुरू कर दे तो हमारी सबसे बड़ी समस्या हल हो जाएगी.

गांव में किराना की दुकान चलाने वाली सविता देवी बताती हैं कि उनके पति कोलकाता के किसी कपड़ा फैक्ट्री में काम करते हैं. घर की आमदनी के लिए उन्होंने गांव में किराना की दुकान खोल ली है. जिसमें सामान के लिए उन्हें हर हफ्ते शहर जाना पड़ता है. वह कहती हैं कि शहर से कैशापी गांव के लिए अंतिम बस दोपहर तीन बजे निकल जाती है. कई बार खरीदारी में लेट हो जाने के कारण उनकी बस छूट जाती है. जिसके बाद उन्हें ऑटो बुक करनी पड़ती है. अधिकतर ऑटो वाले गांव आने के लिए तैयार नहीं होते हैं. यदि तैयार भी होते हैं तो बहुत अधिक किराया मांगते हैं. जिसे उन्हें मजबूरीवश अदा करनी पड़ती है. सविता कहती हैं कि यदि गांव तक सरकारी बस की सुविधा आसानी से और हर समय उपलब्ध हो जाए तो गांव वालों की बहुत बड़ी समस्या हल हो जाएगी. वह बताती हैं कि जिस प्रकार सड़क बेहतर हो जाने से गांव में एम्बुलेंस का पहुंचना आसान हो गया है और किसी भी गर्भवती महिला को प्रसव के लिए समय पर अस्पताल पहुंचाना सुलभ हो गया है, इसी प्रकार आम लोगों के लिए भी परिवहन की सुविधा होनी चाहिए.

वास्तव में, परिवहन आर्थिक दृष्टिकोण से विकास का एक प्रमुख कारक माना जाता है. ऐसे में कैशापी पुरानी डिह जैसे शहर से दूर गांव में यदि यातायात के साधन सुलभ नहीं होंगे तो विकास की प्रक्रिया अधूरी रह जाएगी. एक गांव का विकास उस वक़्त तक पूर्ण नहीं माना जा सकता है जब तक ग्रामीणों को अच्छी सड़क के साथ साथ यातायात की सुगम व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो जाती है. (चरखा फीचर)



- गोल्डी कुमारी
गया, बिहार

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