ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की जरूरत

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ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की जरूरत


स्पतालों की क्षितिज जब गाँव की उन संकरी गलियों में दिखने लगती है जहाँ पहले दर्द सहते इंसानों को कभी-कभी गाँव के बाहर बड़े कस्बे तक पानी की तरह पार ले जाने की मजबूरी होती थी तब उम्मीद की एक किरण फैलती है। बीकानेर के लूणकरणसर तहसील में स्थित नाथवाना गांव में रहने वाले लोग इस अनुभव को जानते हैं जहाँ एक चोट, बुखार या प्रसव जैसे मामलों में यदि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा समय पर मिल जाए तो जीवन बचाने और बेहतर होने का फर्क महसूस होता है। अस्पतालों की स्थिति में सुधार ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए एक अनिवार्य आधार है।

ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की जरूरत
राजस्थान में ग्रामीण अस्पताल व स्वास्थ्य केन्द्र (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्र, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर एवं जिला अस्पताल आदि) की संख्या व क्षमताएँ पिछले वर्षों में बढ़ी हैं जिससे चिकित्सा पहुँच बेहतर हुई है। उदाहरण स्वरूप, राज्य में Health and Wellness Centres (HWCs) की तैनाती हुई है जिसमें ग्रामीण इलाकों के लिए 1,975 PHC-स्तर के तथा 191 Sub-Centre स्तर के HWCs शामिल हैं ताकि स्वास्थ्य संबंधी सामान्य देखभाल गाँव की सीमा तक पहुँचे। इसके अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की संख्या में वृद्धि हुई है और राज्य सरकार ने अस्पताल कर्मियों की नियुक्तियों पर ध्यान केंद्रित किया है।

राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो Rural Health Statistics 2021-22 के अनुसार पूरे देश में ग्रामीण PHCs की संख्या लगभग 24,935 रही है, और ग्रामीण CHCs की संख्या 5,480 है। इसकी तुलना वर्ष 2005 से की जाए तो PHCs और CHCs की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है ताकि ग्रामीण जनसंख्या को नजदीकी अस्पतालों व उपचार सुविधाओं से जोड़ा जा सके। राजस्थान में Sub-Centres, PHCs और CHCs की कुल संख्या इस नेटवर्क के अंतर्गत लगभग 13,227 Sub-Centres, लगभग 2,066 PHCs और लगभग 551 CHCs दर्ज की गई थी एक पुराने रिपोर्ट में जो कि स्वास्थ्य वितरण प्रणाली की त्रि-स्तरीय संरचना बताती है।

नाथवाना गाँव की स्थिति इस सामान्य राज्य-स्तरीय बदलाव का प्रतिबिंब है जहां अस्पताल या स्वास्थ्य केन्द्र की पहुँच पहले बहुत कम थी। आज गाँव से करीब-करीब प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुँचने योग्य है, लेकिन वहाँ का केन्द्र पूरी तरह सक्षम नहीं है। अस्पतालों में दवाओं की कमी, चिकित्सक व विशेषज्ञों की अनुपस्थिति, आपात स्थिति में सुविधा की सीमा, प्रसव संबंधी देखभाल की निर्बलता, लैब व परीक्षण साधनों की कमी जैसे अनुभव अभी भी सामान्य हैं। गाँव के लोग बताते हैं कि बुखार, पेट की समस्या या चोट-फटना जैसी स्थिति में सबसे नज़दीकी स्वास्थ्य केन्द्र पहुँचने में समय लगता है, और यदि मामला जटिल हो तो कस्बा या जिला अस्पताल जाना पड़ता है जहाँ यात्रा के समय और खर्च की बाधाएँ होती हैं।

जब बात आंकड़ों की हो तो राजस्थान में अस्पताल बिस्तरों की उपलब्धता, विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती, अस्पताल भवन की स्थिति आदि में अभी भी कमी है। स्वास्थ्य विभाग की आकलना अनुसार रोगी-दवा-परीक्षण संबंधी सुविधाएँ अयोग्य अस्पतालों में अक्सर अधूरी होती हैं। राज्य के पत्रिकाओं में प्रकाशित खबरों से पता चलता है कि हाल ही में लगभग 1,699 नए चिकित्सक अधिकारियों विभिन्न प्राथमिक, सामुदायिक और जिला अस्पतालों में नियुक्त किए गए हैं ताकि डॉक्टरों की कमी को कम किया जाए।

स्वास्थ्य कर्मचारियों जैसे नर्सों, स्टाफ नर्स, मेडिकल एवं पैरामेडिकल स्टाफ की स्थिति में सुधार होना शुरू हुआ है। राजस्थान के स्वास्थ्य प्रणाली में अभी भी विशेषज्ञों (सर्जन, प्रसूति-गायनो, बाल रोग आदि) की कमी है, एवं अस्पतालों को आपात देखभाल, ऑक्सीजन आपूर्ति, इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU), पैरामीटर मॉनिटरिंग उपकरणों आदि से सुसज्जित करना बाकी है। अस्पताल भवन की मरम्मत की जरूरत है, स्वच्छता एवं उपकरणों की नियमित देखभाल आवश्यक है।

नाथवाना की कहानी इस सुधार-अभाव के बीच संतुलन का उदाहरण है। गाँव के लोग बताते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में चुनिंदा दवाएँ उपलब्ध होती हैं, इंजेक्शन एवं सरल परीक्षण जैसे मलेरिया जांच, वायरल बुखार की जांच की सुविधा कभी-कभार होती है। प्रसव के दौरान विशेष कष्ट तब होता है जब प्रसूती गृह नहीं होता या वह सूचनात्मक कर्मचारियों व सुविधा-युक्त उपकरणों से लैस नहीं होता। आपात स्थिति जैसे चोट या गंभीर बीमारी होने पर अस्पताल या विशेषज्ञ चिकित्सक के पास पहुँचने में दूरी, समय व परिवहन की चुनौतियां होती हैं।

भविष्य की दिशा यह हो सकती है कि नाथवाना व इसी तरह के ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों को केवल संख्या में बढ़ाया नहीं जाए बल्कि क्षमता, गुणवत्ता व निरंतरता सुनिश्चित की जाए। अस्पतालों को आधुनिक-प्रयोगशाला सुविधा मिले, आकस्मिक देखभाल कार्यान्वित हो, प्रसवचिकित्सा-गायनोकोलॉजी और नवजात देखभाल वैंटिलेटर समेत अन्य जीवनरक्षक उपकरणों की उपलब्धता हो। चिकित्सक एवं विशेषज्ञों की तैनाती सुनिश्चित हो, स्टाफ प्रशिक्षण नियमित हो ताकि सेवा मानक बेहतर हो। अस्पताल भवन एवं सफाई, स्वच्छ जल, बिजली आपूर्ति, सेनिटेशन जैसे बुनियादी पहलुओं में सुधार हो। डिजिटल हेल्थ सुविधाएं जैसे टेलीमेडिसिन आदि गाँवों तक पहुँचे जिससे आम बीमारियों व परीक्षणों के लिए गाँव से बाहर जाने की आवश्यकता कम हो। (यह लेखिका के निजी विचार हैं)


- लक्ष्मी
लूणकरणसर, राजस्थान

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