कब पूरा होगा किशोरियों के लिए आजादी का अर्थ ?
कब पूरा होगा किशोरियों के लिए आजादी का अर्थ ? क भी कभी हमारे देश में देखकर लगता है कि देश तो आजाद हो गया है, जहां सभी के लिए अपनी पसंद से जीने और रहने की आज़ादी है. लेकिन महिलाओं और किशोरियों खासकर जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं, उनके लिए आजादी का कोई मतलब नहीं है. उनके लिए तो नींद ही स्वतंत्रता को महसूस करने का एकमात्र साधन है क्योंकि इसमें कोई रोक टोक नहीं है. बंद आंखों से एक लड़की अपने वह सारे सपने, आजादी और अपनी खुशी महसूस करती है जिससे वह पाना चाहती है. लेकिन आंख खुलते ही वह एक बार फिर से संस्कृति और परंपरा की बेड़ियों में खुद को बंधा हुआ पाती है. सवाल यह है कि क्या सही अर्थों में यही आजादी है? देश गुलामी से आज़ादी की तरफ बढ़ तो गया लेकिन दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं और किशोरियां आज भी पितृसत्ता समाज की बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं. उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित रखा जाता है. यहां तक कि उन्हें अपने लिए फैसले लेने की आज़ादी भी नहीं होती है. उन्हें वही फैसला मानना पड़ता है जो घर के पुरुष सदस्य लेते हैं, फिर वह फैसला चाहे उनके हक़ में न हो. उन्हें तो अपनी राय देने तक की आज़ादी नहीं