क्या भारत को परमाणु ऊर्जा पर अपनी निर्भरता बढ़ानी चाहिए?

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क्या भारत को परमाणु ऊर्जा पर अपनी निर्भरता बढ़ानी चाहिए?


भारत जैसे विशाल और तेजी से विकासशील देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता एक जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दा है। परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने का प्रश्न न केवल तकनीकी और आर्थिक दृष्टिकोण से विचारणीय है, बल्कि यह पर्यावरणीय, सामाजिक और भू-राजनीतिक कारकों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए इसके लाभों और चुनौतियों का संतुलित विश्लेषण आवश्यक है।

बढ़ती ऊर्जा मांग

क्या भारत को परमाणु ऊर्जा पर अपनी निर्भरता बढ़ानी चाहिए?
भारत में ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है। शहरीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण बिजली की खपत में निरंतर वृद्धि हो रही है। वर्तमान में कोयला भारत का प्रमुख ऊर्जा स्रोत है, लेकिन यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ नहीं है। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र कार्बन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं। भारत ने पेरिस समझौते के तहत 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई है। इस संदर्भ में, परमाणु ऊर्जा एक स्वच्छ विकल्प के रूप में उभरती है, क्योंकि यह कोयले की तुलना में प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में बहुत कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करती है। यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

परमाणु ऊर्जा का एक अन्य प्रमुख लाभ इसकी उच्च ऊर्जा घनत्व है। यूरेनियम और थोरियम जैसे परमाणु ईंधन से उत्पन्न ऊर्जा की मात्रा जीवाश्म ईंधनों की तुलना में कई गुना अधिक होती है। भारत के पास विश्व के सबसे बड़े थोरियम भंडार हैं, और थोरियम आधारित रिएक्टरों के विकास पर चल रहा अनुसंधान इसे ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जा सकता है। थोरियम तकनीक विदेशी यूरेनियम पर निर्भरता को कम कर सकती है, जो भारत जैसे देश के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, परमाणु संयंत्रों की दीर्घकालिक परिचालन लागत अपेक्षाकृत कम होती है, जो इसे आर्थिक रूप से आकर्षक बनाती है। परमाणु ऊर्जा की निरंतर और स्थिर आपूर्ति इसे उन क्षेत्रों में उपयोगी बनाती है, जहां बिजली की मांग में उतार-चढ़ाव को सहन करना मुश्किल होता है।

सुरक्षा जोखिम

हालांकि, परमाणु ऊर्जा के उपयोग से जुड़े जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सबसे बड़ी चिंता परमाणु दुर्घटनाओं की संभावना है। चेर्नोबिल और फुकुशिमा जैसी घटनाएं परमाणु ऊर्जा के खतरों को उजागर करती हैं। यद्यपि भारत में परमाणु संयंत्रों का सुरक्षा रिकॉर्ड अब तक मजबूत रहा है, लेकिन प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप या सुनामी, और मानवीय त्रुटियां जोखिम को बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा, रेडियोधर्मी कचरे का प्रबंधन एक गंभीर चुनौती है। यह कचरा हजारों वर्षों तक पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बना रहता है। भारत में इस कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए दीर्घकालिक और टिकाऊ समाधान अभी भी विकसित किए जा रहे हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना और संचालन के लिए भारी पूंजी निवेश और उन्नत तकनीकी विशेषज्ञता की भी आवश्यकता होती है, जो इसे एक जटिल विकल्प बनाता है।

सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी परमाणु ऊर्जा के अपने निहितार्थ हैं। परमाणु संयंत्रों के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण और स्थानीय समुदायों का विस्थापन अक्सर विवाद का कारण बनता है। कुडनकुलम और जैतापुर जैसे परियोजनाओं में स्थानीय लोगों ने पर्यावरणीय क्षति और आजीविका के नुकसान की आशंकाओं के कारण विरोध किया है। इन विरोधों को संबोधित करने के लिए पारदर्शी संवाद और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा का भू-राजनीतिक आयाम भी महत्वपूर्ण है। भारत का परमाणु कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय समझौतों और निगरानी के अधीन है। यूरेनियम आयात और परमाणु तकनीक का हस्तांतरण वैश्विक राजनीति और व्यापार नीतियों से प्रभावित हो सकता है, जो भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा का विकल्प

परमाणु ऊर्जा के विकल्प के रूप में भारत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा, में भी तेजी से निवेश कर रहा है। सौर और पवन ऊर्जा पर्यावरण के लिए अधिक सुरक्षित हैं और सामाजिक स्वीकार्यता के मामले में कम विवादास्पद हैं। हाल के वर्षों में सौर ऊर्जा की लागत में कमी और तकनीकी प्रगति ने इसे और अधिक व्यवहार्य बनाया है। हालांकि, नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी सीमाएं हैं। सौर और पवन ऊर्जा मौसम पर निर्भर हैं, और उनकी भंडारण तकनीक अभी भी महंगी और सीमित है। इसके विपरीत, परमाणु ऊर्जा 24x7 स्थिर बिजली आपूर्ति प्रदान करती है, जो इसे आधार भार (बेसलोड) बिजली के लिए उपयुक्त बनाती है। इसलिए, भारत के लिए एक संतुलित ऊर्जा मिश्रण अपनाना महत्वपूर्ण है, जिसमें परमाणु ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करें।

आवश्यक उपाय

परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने का निर्णय भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति, पर्यावरणीय लक्ष्यों और सामाजिक-आर्थिक प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। सुरक्षा मानकों को और सख्त करने, रेडियोधर्मी कचरे के प्रबंधन के लिए नवीन समाधान विकसित करने और थोरियम आधारित रिएक्टरों में निवेश करने से परमाणु ऊर्जा को अधिक सुरक्षित और टिकाऊ बनाया जा सकता है। साथ ही, स्थानीय समुदायों की चिंताओं को संबोधित करने और परियोजनाओं में पारदर्शिता बनाए रखने से सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ सकती है। भारत को अपनी ऊर्जा नीति में परमाणु ऊर्जा को एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल करना चाहिए, लेकिन इसे नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य स्वच्छ स्रोतों के साथ संतुलित करना होगा। यह दृष्टिकोण भारत को ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद करेगा, जिससे एक आत्मनिर्भर और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य सुनिश्चित हो सके।

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