आदमी को मालूम नहीं कब किससे कैसे लें दुआ

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आदमी को मालूम नहीं कब किससे कैसे लें दुआ


बीस से बीस हजार हर्ट्ज की आवाज से
कमोबेश सुनने की क्षमता नहीं मनुज को
ये तथ्य मिथक नहीं विज्ञान सम्मत है
शून्य से एक सौ अस्सी डेसीबल तक की 
ध्वनि  महसूस कर सकता मनुष्य जाति!

इससे कम वॉइस में फुसफुसाता विषाणु, 
जीवाणु, अलगी, फंगस और पादप प्राणी!

आदमी को मालूम नहीं कब किससे कैसे लें दुआ
इससे अधिक आवाज में सरसराती हवा 
गड़गड़ाती धरा,हुंकार भरता है सौर मंडल, 
टिमटिमाते तारे,झिलमिलाती आकाशगंगा, 
चमकती बिजली,तूफानी आहट भूकंप की 
कंपकंपी,मौत की घंटी मानव  सुनता नहीं!
 
लेकिन रंभाने लगती घर बथान की गाय,
आभास पा लेता कुत्ता,बिल्ली,खरगोश,मोर,
सियार,शेर,हाथी,पशु-पक्षी सुरक्षित हो लेता 
ठिकाने में पर जमींदोज हो जाता आदमी!

आदमी जो इतराता है भाषा का विकास कर,
वायुयान से जमीं आसमान एक कर देने पर
तोप, मिसाइल, आग्नेयास्त्र कर के प्रक्षेपित, 
जो पहले जमाने के अस्तित्व में विकसित!

रावण उड़ाता था पुष्पक यान लंका से कैलाश 
फिर रावणेश्वर महादेव वैद्यनाथधाम, देवघर 
त्रिकुटी पर्वत शिखर पर अवस्थित हैलीपेड पर
जहां आज बना एशिया का सबसे बड़ा रोप-वे,
सीताहरण व राम की वापसी भी उसी यान से!

रावण विजेता सप्त द्वीप नौ खण्ड के चक्रवर्ती 
सहस्रार्जुन का अलोपी यान उड़ता मन की गति!
द्रोण, कृष्ण, अर्जुन माहिर थे ब्रह्मास्त्र संधान में, 
विमान निर्माण विधि वर्णित ऋषि भरद्वाज कृत 
यंत्र सर्वेश्वम ग्रंथ के वैमानिक शास्त्र अध्याय में!

जो अब कल्पना नहीं यथार्थ लगता है इन्टरनेट,
टेलीविजन, कम्प्यूटर के आविष्कार हो जाने से
मगर ये आदमी आकाशीय बिजली की चमक से 
धराशाई हो जाता है आज पहले से कहीं ज्यादा!

आदमी की फुसफुसाहट, गुर्राहट को सुन लेता है
पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, नदी-पहाड़,झील झरना तक,
पेड़ पौधे काटे जाने पर डर से कांप सिहर जाता
जिसे प्रमाणित किया वैज्ञानिक जगदीश बसु ने!

आदमी के प्यार की सिसकारियों और मृत्यु की 
चीत्कार से वाकिफ है जीवाणु,विषाणु,जीव जगत, 
किन्तु आदमी होता इन सबसे बेफिक्र अनजान
कि उसके पास कोई नहीं उसके सिवा जानकार!

कोई नहीं बतियाता उसके सिवा उसके आस-पास
सच्चाई ऐसी कि इंसान की हर हरकत को जानता 
धर्मराज युधिष्ठिर का कुत्ता, गणिका का सुवा, बस
आदमी को मालूम नहीं कब,किससे, कैसे लें दुआ?

आश्चर्य कि दिन ब दिन ह्रासमान हो रही स्थिति
बहुत हाल तक, रामायण महाभारत के काल तक 
आदमी का बतियाना शुक सारंग हंस से आम था
काक भुशुण्डी लोमड़ी, यक्ष व युधिष्ठिर संवाद भी!




- विनय कुमार विनायक

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