गांव खुशहाली का प्रतीक कैसे बना ?
गांव के कुछ युवाओं को शहर की चकाचौंध पसंद आने लगी। वे गांव छोड़कर शहर चले गए। गांव में बुजुर्गों की संख्या बढ़ने लगी। गांव की परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त होने लगीं। लोग अपने स्वार्थ में इतने मग्न हो गए कि उन्हें अपने आसपास के लोगों की परवाह ही नहीं रही।
गांव की एक युवती थी, सीता। वह गांव की परंपराओं को बचाए रखना चाहती थी। उसने गांव के युवाओं को एकत्रित किया और उन्हें गांव की संस्कृति के बारे में बताया। सीता ने गांव में एक पुस्तकालय खोला, जहां लोग पढ़ सकते थे और अपनी जानकारी बढ़ा सकते थे। उसने गांव में खेलकूद के आयोजन भी किए ताकि युवाओं का ध्यान नशे और अन्य बुराइयों से हट सके।
लेकिन सीता की यह कोशिश अकेले काफी नहीं थी। गांव के कुछ लोग अभी भी अपनी पुरानी आदतों से बंधे हुए थे। वे सीता का विरोध करते थे। उन्हें लगता था कि सीता गांव की परंपराओं को बदलना चाहती है।
एक दिन गांव में एक बड़ा मेला लगा। मेले में दूर-दूर से लोग आए। गांव के लोग भी मेले में शामिल होने गए। मेले में एक जादूगर आया। उसने लोगों को अपनी चालों से बहुत प्रभावित किया। जादूगर ने गांव वालों को बताया कि वह भूत-प्रेत को बुला सकता है। गांव के कुछ लोग इस बात पर विश्वास कर गए और डर गए।
सीता ने लोगों को समझाया कि जादूगर की यह सब चालें हैं। उसने लोगों को बताया कि हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। हमें अपनी बुद्धि पर विश्वास करना चाहिए। सीता की बात सुनकर कुछ लोग तो मान गए लेकिन कुछ लोग अभी भी डरे हुए थे।
रात को गांव में अजीब-अजीब आवाजें आने लगीं। लोग डर के मारे अपने घरों में बंद हो गए। कुछ लोगों ने जादूगर को बुलाया और उससे गांव को भूत-प्रेत से बचाने के लिए कहा। जादूगर ने लोगों से पैसे मांगे और कहा कि वह गांव को भूत-प्रेत से बचा देगा।
सीता ने जादूगर के पास जाकर कहा कि वह सब झूठ बोल रहा है। उसने लोगों को बताया कि यह सब जादूगर की चाल है। उसने लोगों को एकजुट होकर जादूगर का विरोध करने के लिए कहा। लोगों ने सीता की बात मान ली और उन्होंने मिलकर जादूगर को गांव से बाहर निकाल दिया।
इस घटना के बाद गांव के लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने सीता की बात मान ली और गांव को बदलने के लिए काम करने लगे। धीरे-धीरे गांव में फिर से खुशियां लौटने लगीं। लोग एक-दूसरे की मदद करने लगे और मिलजुलकर रहने लगे।
सीता की यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपनी परंपराओं को बचाए रखना चाहिए। हमें अपनी बुद्धि पर विश्वास करना चाहिए और किसी भी अंधविश्वास पर विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए और मिलजुलकर रहना चाहिए।
कहानी का अंत
कई साल बीत गए। सुखपुरा गांव फिर से खुशहाली का प्रतीक बन गया। सीता को गांव की मुखिया चुना गया। उसने गांव के विकास के लिए बहुत काम किया। गांव में स्कूल, अस्पताल और अन्य सुविधाएं बनवाई गईं। गांव के लोग सीता को बहुत प्यार करते थे।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि एक व्यक्ति अगर दृढ़ निश्चयी हो तो वह बहुत कुछ कर सकता है। सीता ने अकेले ही गांव को बदल दिया। हमें भी सीता की तरह होना चाहिए और अपने गांव, अपने देश और अपने समाज के विकास के लिए काम करना चाहिए।
तुम क्या सोचते हो?
- क्या तुमने कभी किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना है जिसने अपने गांव को बदला हो?
- तुम अपने गांव या शहर के लिए क्या कर सकते हो?
- इस कहानी से तुमने क्या सीखा?
अगर तुम चाहो तो इस कहानी को और आगे बढ़ा सकते हो।
- तुम सीता के बाद गांव में क्या हुआ होगा, यह लिख सकते हो।
- तुम इस कहानी को किसी और पात्र के नजरिए से भी लिख सकते हो।
- तुम इस कहानी को किसी और विषय से जोड़कर भी लिख सकते हो।
मुझे उम्मीद है कि तुम्हें यह कहानी पसंद आई होगी।