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पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के अचूक उपाय

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पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के अचूक उपाय प ढ़ाई में ध्यान केंद्रित करना हर छात्र के लिए एक चुनौती हो सकती है। लेकिन चिंता न करें, कुछ आसान तरीकों से आप अपनी एकाग्रता को बढ़ा सकते हैं और पढ़ाई को और अधिक मज़ेदार बना सकते हैं। एक शांत और व्यवस्थित अध्ययन वातावरण बनाएं शांत जगह चुनें: एक ऐसी जगह चुनें जहां कोई आपको परेशान न करे। अव्यवस्था दूर करें: अपनी पढ़ाई की जगह को साफ-सुथरा रखें। आरामदायक कुर्सी और टेबल: सुनिश्चित करें कि आपकी कुर्सी और टेबल आरामदायक हों ताकि आप लंबे समय तक बैठ सकें। अच्छी रोशनी: पर्याप्त रोशनी होना जरूरी है ताकि आपकी आंखें थकें नहीं। प्रभावी अध्ययन की आदतें नियमित समय सारणी: एक निश्चित समय पर पढ़ाई करने की आदत डालें। छोटे लक्ष्य: बड़े लक्ष्यों को छोटे-छोटे लक्ष्यों में बांटें और धीरे-धीरे पूरा करें। विराम लें: हर 30-45 मिनट में 5-10 मिनट का ब्रेक लें। एक विषय पर ध्यान दें: एक समय में एक विषय पर ध्यान केंद्रित करें। नोट्स बनाएं: पढ़ते समय नोट्स बनाएं ताकि आपको चीजें याद रखने में आसानी हो। मन को शांत रखने के उपाय ध्यान: ध्यान करने से मन शांत होत

कान्हा की माखन चोरी | जन्माष्टमी पर बच्चों के लिए कहानियां

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कान्हा की माखन चोरी ए क बार की बात है, मथुरा के पास एक छोटा सा गाँव था। उस गाँव में एक छोटा सा बच्चा रहता था, जिसका नाम कान्हा था। कान्हा बहुत शरारती बच्चा था। वह दिन भर खेलता रहता था और माखन खाता रहता था। एक दिन, कान्हा ने देखा कि उसकी माँ यशोदा माखन का एक बड़ा घड़ा बना रही हैं। कान्हा का मन माखन खाने को ललचाया। उसने चुपके से माखन का घड़ा उठा लिया और जंगल की ओर भाग गया। जंगल में जाकर कान्हा एक पेड़ के नीचे बैठ गया और माखन खाने लगा। तभी, उसे कुछ आवाज सुनाई दी। कान्हा डर गया और पेड़ पर चढ़ गया। नीचे देखकर उसने देखा कि कुछ गायें उसके पास आ रही हैं। कान्हा बहुत डरा हुआ था। तभी, उसने देखा कि गायें उसे नुकसान पहुँचाने की बजाय उसे देखकर मुस्कुरा रही हैं। कान्हा समझ गया कि गायें उसे प्यार करती हैं। उसने गायों को माखन दिया और वे बहुत खुश हुईं। कान्हा और गोपियों का खेल एक बार, कान्हा और गोपियाँ यमुना नदी के किनारे खेल रहे थे। वे बहुत खुश थे। वे गाते, नाचते और खेलते थे। तभी, कान्हा ने देखा कि एक साँप यमुना नदी में डूब रहा है। कान्हा ने तुरंत साँप को बचा लिया। साँप बहुत खुश हुआ और उसने कान्हा को

भारत का विकास एक जटिल और बहुआयामी विषय है

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भारत का विकास एक जटिल और बहुआयामी विषय है भा रत का विकास एक जटिल और बहुआयामी विषय है। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब देने के लिए कई कारक और दृष्टिकोणों को ध्यान में रखना होता है। भारत के विकास के लिए कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है: शिक्षा: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर नागरिक का अधिकार है। शिक्षा के माध्यम से ही हम एक कुशल और सक्षम कार्यबल तैयार कर सकते हैं। शिक्षा में सुधार के लिए सरकार को शिक्षकों के प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा, स्कूलों की बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा और शिक्षा को अधिक व्यावहारिक बनाना होगा। स्वास्थ्य: एक स्वस्थ राष्ट्र ही मजबूत राष्ट्र होता है। स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और सस्ती बनाने के लिए सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना होगा, दवाओं की कीमतों को कम करना होगा और स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाने होंगे। रोजगार: रोजगार सृजन भारत के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। सरकार को उद्योगों को बढ़ावा देना होगा, स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना होगा और कौशल विकास पर ध्यान देना होगा। बुनियादी ढांचा: स

हमारा समाज विकास की दौड़ में पीछे रह जाता है

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योजनाओं के समुचित लाभ से वंचित क्यों रह जाते हैं ग्रामीण? दे श के विकास में सभी नागरिकों की एक समान भागीदारी बहुत मायने रखती है. केवल शहरी और औद्योगिक क्षेत्र ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की भूमिका भी विकास में प्रमुख रूप से होती है. फिर चाहे वह कृषि क्षेत्र हो या लघु उद्योग, देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में सभी का बराबर का योगदान रहता है. इसके बावजूद शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार की बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है. हालांकि सरकार की ओर से गांव के विकास के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जाती हैं. लेकिन जागरूकता और संसाधनों का अभाव समेत कई अन्य कारणों से ग्रामीण जनता इसका लाभ उठाने से पीछे रह जाती है. राजस्थान के अजमेर का नाचनबाड़ी गांव भी ऐसा ही एक उदाहरण है, जहां ग्रामीण सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं से न केवल वंचित हैं, बल्कि कई स्तरों पर उन्हें इसकी जानकारियां तक नहीं है. जिस कारण यहां के लोग विकास की दौड़ में पिछड़ते जा रहे हैं.  इस संबंध में गांव की 55 वर्षीय सीता देवी अपने घर की हालत बयां करते हुए कहती हैं कि "पति और बेटा दैनिक मज़द

भूतिया कुत्ता और खोया हुआ खिलौना

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भूतिया कुत्ता और खोया हुआ खिलौना ए क बार की बात है, एक छोटा सा लड़का था जिसका नाम रोहन था। रोहन को कुत्तों से बहुत प्यार था। उसके पास एक प्यारा सा कुत्ता था, जिसका नाम टोनी था। एक दिन, रोहन और टोनी बगीचे में खेल रहे थे। टोनी अपना पसंदीदा लाल गेंद लेकर खेल रहा था। अचानक, गेंद एक बहुत ही पुराने पेड़ के नीचे जा गिरी। पेड़ इतना पुराना था कि लोग कहते थे कि उसमें एक भूत रहता है। रोहन डर गया, लेकिन टोनी गेंद को वापस लाने के लिए पेड़ के पास गया। रोहन ने टोनी को बुलाया, लेकिन टोनी वापस नहीं आया। रोहन बहुत उदास हो गया। अंधेरा होने लगा था। रोहन को बहुत डर लग रहा था। उसने अपने पिता को बुलाया। रोहन के पिता पेड़ के पास गए और टोनी को ढूंढने लगे। तभी, उन्हें एक आवाज सुनाई दी। “मैंने तुम्हारा खिलौना ले लिया है।” आवाज पेड़ से आ रही थी। रोहन और उसके पिता डर गए। तभी, एक छोटा सा कुत्ता पेड़ से बाहर निकला। वह टोनी से बहुत मिलता-जुलता था, लेकिन उसके बाल सफेद थे। कुत्ते के मुंह में रोहन का लाल गेंद था। रोहन ने देखा कि कुत्ता बिल्कुल भी डरावना नहीं है। वह बहुत ही प्यारा था। कुत्ते ने रोहन को गेंद दी और उसकी पू

अधिक से अधिक पेड़ों का संरक्षण करने की जरूरत है

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आखिर क्यों और कैसे जल रहे हैं जंगल ? उ त्तराखंड को देश के चंद हरियाली वाले राज्यों के रूप में जाना जाता है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इसका हर इलाका लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. यही कारण है कि यहां के विभिन्न पर्यटक स्थलों पर वर्ष भर देश विदेश के पर्यटकों का तांता लगा रहता है. लेकिन अभी यही प्राकृतिक सुंदरता आग की भेंट चढ़ रही है और धीरे धीरे राज्य के बहुत से जंगली इलाके आग में जलने लगे हैं. चाहे वह जंगलों या खेतों की हरियाली क्यों न हो, अब धीरे-धीरे यह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है. लगभग ऐसा कोई दिन नहीं होगा जब स्थानीय समाचारपत्रों की हेडलाइंस आग की खबरों से भरी नहीं होती है. सरकार द्वारा इसके रखरखाव के सापेक्ष कार्य भी किये जा रहे हैं. लेकिन हमने कभी इस बात पर विचार ही नहीं किया कि आखिर इन जंगलों में आग कैसे लग जाती है? वह कौन से कारक हैं जिसके कारण यहां आग फ़ैल जाती है. उत्तराखंड में स्थानीय स्तर पर यह माना जाता है कि जंगल में आग का सबसे बड़ा कारण है 'चीड़' का पेड़ है जिससे पिरूल निकलता है. इसमें उच्च तापमान होने पर स्वतः ही आग लग जाती है. यह आग को जल्द फैलाने का

बड़ी संख्या में किशोरियां स्कूल से बाहर हैं

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भविष्य की नींव है किशोरी शिक्षा ज यपुर के बाबा रामदेव नगर स्लम बस्ती की रहने वाली शारदा की 12 वर्षीय बेटी पूजा (बदला हुआ नाम) अपने तीन साल के छोटे भाई को गोद में खिला रही थी. वहीं पास में शारदा खाना बना रही थी और पूजा से कभी पानी लाने और कभी अन्य सामान लाने को कह रही थी. जिसे वह दौड़ दौड़ कर पूरा भी कर रही थी. हालांकि शारदा उसके बगल में खेल रहे 8 वर्षीय अपने बेटे से खेल छोड़कर सामान लाने को नहीं कहती है. तभी घर के सामने से पूजा की दोस्त स्कूल से लौट रही होती है और पूजा उससे रूककर उत्साह के साथ स्कूल में पढ़ाई के बारे में बात करने लगती है. उसकी बातों से ऐसा लग रहा था कि उसे पढ़ने का बहुत शौक है. उसकी दोस्त स्कूल नहीं आने का जब उससे कारण पूछती है तो इससे पहले ही उसकी मां शारदा जवाब देती है कि 'यह स्कूल चली गई तो हमारे पीछे बच्चों का ध्यान कौन रखेगा?' मां का जवाब और पूजा का मायूस चेहरा बता रहा था कि शिक्षा के प्रति उसे अपने सपने टूटते नज़र आ रहे हैं. 35 वर्षीय शारदा और उसके पति दैनिक मज़दूर हैं और राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर से करीब 10 किमी दूर बाबा रामदेव नगर स्लम बस्ती में रहते हैं.

शिक्षा और रोजगार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं

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गांवों में शिक्षा और रोज़गार की चुनौती ज ब भी हम देश में किसी इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं तो पहला ध्यान गांव की ओर जाता है. इसलिए केंद्र से लेकर सभी राज्यों की सरकार भी ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रख कर ही अपनी योजनाएं तैयार करती हैं. इस मामले में शिक्षा और रोज़गार सबसे महत्वपूर्ण विषय होता है. जो न केवल गांव बल्कि देश और समाज का भविष्य भी तैयार करता है. शिक्षा के मुद्दे पर स्कूल की बिल्डिंग, लैब की सुविधा, सभी विषयों के शिक्षकों की नियुक्ति और मिड डे मील की सुविधा के साथ साथ गांव से स्कूल की दूरी और लड़कियों की स्कूल तक आसान पहुंच अहम पहलू साबित होता है. यह वह मुख्य बिंदु होते हैं जो स्कूल में छात्रों की उपस्थिति और शिक्षा के प्रति उनके उत्साह को बढ़ाता है. वहीं शिक्षा के बाद रोज़गार हासिल करना एक ऐसी चुनौती है जिससे ग्रामीण युवा सबसे अधिक जूझ रहा है. राजस्थान का धुवालिया नाड़ा गांव भी इसका एक उदाहरण है जहां बच्चों को शिक्षा तो मिल रही है लेकिन युवा रोज़गार की तलाश में भटक रहा है. इस संबंध में 10वीं में पढ़ने वाली 15 वर्षीय निशा कहती है कि मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. गांव से हम चार ल

पहली नज़र का प्यार

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पहली नज़र का प्यार ए क बार की बात है, एक छोटे से शहर में रहने वाली आराध्या नाम की एक लड़की थी। उसकी आँखें मानो दो तारे सी चमकती थीं और हँसी इतनी मधुर थी कि हर कोई उसका दीवाना हो जाता था। आराध्या एक किताबों की कीड़ी थी और अक्सर शहर के पुराने बाजार में किताबें खरीदने जाती थी। एक दिन, पुराने बाजार में घूमते हुए आराध्या की नज़र एक पुरानी किताबों की दुकान पर पड़ी। दुकान के अंदर धूल भरी किताबों की महक ने उसे अपनी ओर खींचा। दुकान के अंधेरे कोने में एक युवक किताबों में खोया हुआ बैठा था। उसकी गहरी आँखें और लंबे बालों ने आराध्या का दिल धड़का दिया। वह युवक, विहान, एक प्रसिद्ध लेखक था जो अपनी पहचान छुपाकर इस छोटे से शहर में रहता था। आराध्या विहान से मिली और दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई। उन्हें एक-दूसरे में बहुत कुछ समान लगा। घंटों तक वे किताबों और अपने सपनों के बारे में बात करते रहे। आराध्या को विहान की रचनात्मकता और ज्ञान बहुत पसंद आया और विहान को आराध्या की मासूमियत और जिज्ञासा। धीरे-धीरे, दोनों के बीच दोस्ती गहरी होती गई। वे हर रोज मिलने लगे और शहर के कोने-कोने में घूमते रहे। विहान आराध्या को

समाज में महिला स्वास्थ्य के लिए गंभीरता

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महिला स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होता कालबेलिया समाज रा जस्थान के अजमेर जिला स्थित घूघरा पंचायत का एक छोटा सा गांव है 'नाचनबाड़ी'. इस गांव में कालबेलिया समुदाय की बहुलता है. अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्ज इस समुदाय के यहां लगभग 500 घर हैं. 2008-09 में इनके मात्र 70 से 80 घर हुआ करते थे. धीरे धीरे स्थाई रूप से यहां आबाद होने के कारण इनकी आबादी बढ़ती चली गई. इस समुदाय की महिलाओं में पहले की अपेक्षा स्वास्थ्य के मामले में काफी जागरूकता आ गई है. पहले जहां महिलाएं घर पर ही बच्चे को जन्म देती थीं, वहीं अब वह सरकारी या निजी अस्पताल जाती हैं. गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य का समुदाय में ध्यान भी रखा जाता है. उनका समय समय पर टीकाकरण करवाया जाता है. इतना ही नहीं, माताएं समय पर अपने बच्चों का टीकाकरण कराने अस्पताल जाती हैं. हालांकि कम उम्र में लड़कियों की शादी अभी भी इस समुदाय की सबसे बड़ी कमी बनी हुई है. जिससे कई बार प्रसव के समय उसकी जान पर खतरा हो जाता है. इसी समुदाय की 25 वर्षीय सुमित्रा के तीन बच्चे हैं. बड़ा बेटा सात वर्ष का है जबकि छोटी बेटी अभी आठ माह की है. मात्र 16 वर्ष की उम्र में उसक

भाई भाई के रिश्ते में सब कुछ सहा जाता है

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भाई भाई के रिश्ते में सब कुछ सहा जाता है भा ई-भाई के रिश्ते में सब कुछ सहा जाता है, बिन कहे सुख-दुख में एक साथ रहा जाता है! अकेले राम को वन जाने की सजा मिली थी, अर्धांगिनी सीता भी बिन सजा साथ चली थी!  अनुज लक्ष्मण को अहसास हुआ तत्क्षण ही,  अग्रज के दोहरे दुख भाभी की सुरक्षा की भी! लखन ने तात मात के आदेश की चाह न की, भाई भाभी के साथ वनवास की राह पकड़ ली! राम ने मना किया तुम्हें नहीं आज्ञा माता की,  तुम्हें नहीं राजाज्ञा, नहीं सहमति धर्मपत्नी की! मगर अनुज अग्रज बीच चला नहीं बहाना कोई,  भाई का जन्म होता भय हरण सहायता हेतु ही! राम सीता की कुटिया की पहरेदारी लक्ष्मण ने की, उर्मिला भी पति वियोग में चौदह वर्ष मूर्च्छित रही, कंचन मृग अभिलाषी सीता रावण द्वारा हर ली गई, राम लखन की वानरी सेना ने स्वर्ण लंका जीत ली! लक्ष्मण ने स्वर्ण लंका में राज करने की बात कही, पर राम ने ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि’  भाव प्रदर्शित कर मुनासिब समझा निज गृह वापसी, सुनो भाई जननी व जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़के होती!  राम तो एक ही थे त्रिया हठ में स्वर्ण मृग गए लाने,   पर अनुज के स्वर्ण लंका भोगने की चाह नहीं माने

चांद पर चांदनी का खजाना | बच्चों की कहानी

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चांद पर चांदनी का खजाना ए क बार की बात है, एक छोटी सी लड़की थी जिसका नाम था चांदनी। चांदनी को चांद बहुत पसंद था। रात को वो अपनी खिड़की के पास बैठकर चांद को घंटों निहारती रहती थी। एक रात, चांदनी ने चांद पर एक चमकती हुई चीज़ देखी। वो सोचने लगी कि वो क्या होगा? चांदनी ने अपनी कल्पना में उड़ान भरी और चांद पर पहुंच गई। वहां उसे एक खूबसूरत बगीचा मिला। बगीचे में चमकते हुए फूल थे और पेड़ों पर सोने के फल लगे हुए थे। बगीचे के बीच में एक बड़ा सा महल था। महल के दरवाजे पर एक चाबी का छेद था। चांदनी को लगा कि इस चाबी से महल का दरवाजा खुल सकता है। चांदनी ने अपनी जेब में हाथ डाला और एक चाबी निकाली। यह चाबी उसकी दादी ने उसे दी थी। चांदनी ने चाबी को ताले में डाला और महल का दरवाजा खोल दिया। महल के अंदर जाकर चांदनी दंग रह गई। महल में सोने के बर्तन, हीरे-जवाहरात और बहुत सारे खिलौने थे। लेकिन सबसे खास चीज़ थी एक बड़ा सा संदूक। चांदनी ने संदूक खोला तो उसमें से चांदनी की तरह ही एक छोटी सी लड़की निकली। वो लड़की बोली, "नमस्ते, मैं चांद की राजकुमारी हूँ। मैं बहुत अकेली थी। तुम मेरी दोस्त बनोगी?" चांदनी

बारिश एक आशीर्वाद है

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बारिश एक आशीर्वाद है का ले बादल छम छम बरस रहे, धरती माँ की प्यास बुझा रहे। हरियाली चारों ओर फैली, मानो प्रकृति ने नई जाम पहनी। बूंद-बूंद से धरती भीगी, मानो स्वर्ग से अमृत बरसा। पेड़ों ने खोले अपने आँचल, पिया यह प्रकृति का जल। नदियाँ उफन रही हैं, मानो कह रही हैं, ‘हम जी रहे हैं’। मछलियाँ मस्ती से तैर रही, नई जिंदगी की ओर बढ़ रही। बचपन की यादें ताज़ा हो रही, बारिश में कागज़ की नाव बह रही। दोस्तों के साथ खेल रहे थे, गीले कपड़ों में भी खुश थे। कभी धीरे, कभी तेज़ बरसे, संगीत की तरह ध्वनि बिखरसे। नभ में बिजली चमक रही, धरती को रोशन कर रही। आज भी बारिश की बूंदें, मुझे ले जाती हैं बचपन के दिनों में। जब चिंताएं थीं दूर, और मन था निश्चिंत। बारिश एक आशीर्वाद है, प्रकृति का एक अद्भुत नज़ारा । यह हमें जीवन का सच सिखाती है, कि मुश्किलों के बाद खुशी आती है।

गांव की सड़क का निर्माण भी जरूरी है

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उन्नत सड़क ही गांव को विकास से जोड़ेगा ह मारे देश के विकास में जिन क्षेत्रों का बहुत अहम योगदान है उसमें सड़कों की भी एक बड़ी भूमिका है. माना यह जाता है कि जिस क्षेत्र या गांव में सड़कें टूटी और जर्जर होंगी वहां विकास की कल्पना अधूरी होगी. यानि जिस क्षेत्र या गांव में सड़क की स्थिति बेहतर नहीं होगी वहां अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा विकास की रफ़्तार धीमी रहेगी. निवेश, जो अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी रीढ़ कहलाती है, इसी उन्नत सड़क पर निर्भर है. इसके इसी महत्व को समझते हुए केंद्र और सभी राज्य सरकारों ने इस पर विशेष ध्यान दिया है. राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ साथ प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांवों के सड़कों को भी बेहतर किया जा रहा है. लेकिन राजस्थान के राजपुरा हुडान गांव जैसे देश के कई ऐसे दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्र आज भी ऐसे हैं जो सड़क की खस्ताहाली के कारण विकास की दौड़ में पिछड़ रहे हैं. इस संबंध में 45 वर्षीय तेवाराम कहते हैं कि राजपुरा हुडान में कच्ची सड़क होने के कारण परिवहन की कोई सुविधा नहीं है. इसके कारण राज्य परिवहन निगम की कोई बस गांव में नहीं आती है. लोगों को जिला मुख्यालय या अन्य शहर जाने के

रोजगार के वास्ते पलायन की मजबूरी

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रोजगार के वास्ते पलायन की मजबूरी ह मारा देश जिन बुनियादी आवश्यकताओं से जूझ रहा है उसमें रोज़गार एक प्रमुख मुद्दा है. विशेषकर हमारा ग्रामीण इलाका इससे बहुत अधिक प्रभावित है. जिसके कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण शहरों, महानगरों और औद्योगिक इलाकों की ओर पलायन करने को मजबूर होता है. परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी की व्यवस्था करने के लिए लोग अपने गांव से निकल कर दूसरे शहरों और राज्यों का रुख करते हैं. जहां वह खेतों, फैक्ट्रियों और दिहाड़ी मज़दूर के रूप में 16 से 17 घंटे कड़ी मेहनत करते हैं. जिसके बाद भी वह मुश्किल से 15 से 20 हज़ार रूपए महीना कमा पाते हैं. पलायन का आंकड़ा सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड में देखने को मिलता है, जहां प्रति वर्ष लाखों लोग रोज़गार की खातिर गांव छोड़कर कभी अकेले तो कभी परिवार के साथ दिल्ली, नोएडा, पंजाब, हरियाणा, सूरत, मुंबई और कोलकाता का रुख करते हैं. गांव में रोज़गार का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से पलायन करना इनकी मज़बूरी हो जाती है. बिहार के कई ऐसे गांव हैं जहां प्रति वर्ष ग्रामीणों की एक बड़ी आबादी रोज़गार के लिए पलायन करती है. इनमें अधिकतर अनुसूचित

सच्चा प्यार: एक अमर कहानी

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सच्चा प्यार: एक अमर कहानी एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में रहती थी आराधना। वो बेहद खूबसूरत थी, लेकिन उसकी खूबसूरती से ज्यादा उसकी आत्मा की खूबसूरती चमकती थी। गाँव में ही रहने वाला विहान, आराधना से बहुत प्यार करता था। विहान एक साधारण किसान का बेटा था, लेकिन उसकी आँखों में सपने थे और दिल में आराधना के लिए एक अटूट प्रेम। आराधना भी विहान से प्यार करती थी। लेकिन, गाँव के लोग उनकी शादी के खिलाफ थे। उन्हें लगता था कि विहान आराधना के लायक नहीं है। उन्होंने कई तरह के अड़चनें खड़ी कीं, लेकिन आराधना और विहान का प्यार मजबूत होता गया। एक दिन, गाँव में सूखा पड़ गया। फसलें सूख गईं और लोग भूख से बेहाल थे। विहान ने गाँव वालों को बचाने के लिए एक नदी खोदने का फैसला किया। यह एक बहुत ही जोखिम भरा काम था, लेकिन विहान ने डर के बिना काम शुरू कर दिया। आराधना ने भी विहान की मदद की। दिन-रात एक करके उन्होंने काम किया। आखिरकार, उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें पानी मिल गया। गाँव वाले विहान और आराधना की इस बहादुरी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी गलती मान ली और दोनों की शादी के लिए राजी हो गए। विहान और आराधना

प्यार का धोखा और दर्द की गहराई

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प्यार का धोखा और दर्द की गहराई ज़िं दगी का नया मोड़ था, जब तुम मिले थे,  दिल में उमंगें थीं, सपने बुन ले थे।  हर पल तुम्हारे साथ, लगता था स्वर्ग सा,  तुम्हारी आँखों में, खोया था मेरा नज़ारा। कसमें खाई थीं, साथ निभाने की,  प्यार के बंधन में, हमेशा बने रहने की।  मैंने तुझ पर विश्वास किया, बेदाग दिल से,  तुझे अपना सब कुछ समझा, हर पल हर क्षण के लिए। मगर धोखे का तीर, आया अचानक से,  टूट गए सारे सपने, बिखर गई खुशियाँ जैसे।  दिल का टुकड़ा हुआ, बेवफाई के घाव से,  आँखों में छलक आए, दर्द के आंसू जैसे। क्यों किया तूने ऐसा, क्यों तोड़ा तूने मेरा विश्वास?  क्यों छीन लिया मुझसे, प्यार का ये खजाना?  शायद तूने नहीं समझा, प्यार क्या होता है,  या फिर शायद तूने, कभी सच्चा प्यार नहीं पाया। अब रह गया हूँ मैं अकेला, इस दुनिया में तन्हा,  दिल में उठता सवाल, कहाँ खो गया वो प्यार का सफर?  रातें अब लगती हैं लंबी, दिन गुजरते हैं धीमे,  हर पल याद आती है, तुम्हारी वो बेवफाई की कहानी। मैंने तुम्हें माफ कर दिया, दिल से,  लेकिन ये दर्द, हमेशा मेरे साथ रहेगा।  शायद समय के साथ, ये सब कम हो जाए,  लेकिन ये निशान, हमेशा मे

नई पीढ़ी को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है

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शिक्षा से वंचित बच्चों का भविष्य मे रे चार बच्चे हैं. इन्हें स्कूल भेजना तो दूर, खाना खिलाने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं. कभी मज़दूरी मिलती है और कभी नहीं मिलती है. ऐसे में मैं इनके खाने की व्यवस्था करूं, या इनकी शिक्षा के लिए चिंता करें? पहले स्कूल में एडमिशन कराने का भी प्रयास किया था. लेकिन जन्म प्रमाण पत्र के बिना स्कूल एडमिशन देने को तैयार नहीं हैं. मैं स्लम बस्ती में रहता हूं. पचास साल पहले मेरे पिता यहां स्थाई रूप से रहने लगे थे. लेकिन आज तक हम में से किसी का आधार कार्ड नहीं बना है. ऐसे में महिलाएं घर पर ही बच्चों को जन्म देती हैं. जिनका जन्म प्रमाण पत्र नहीं बन पाता है. इसके बिना स्कूल एडमिशन देने को तैयार नहीं हैं. आप बताओ मैं मज़दूरी कर बच्चों का पेट भरूं या इनके एडमिशन के लिए मज़दूरी छोड़कर भाग दौड़ करूं?" यह कहना 40 वर्षीय भोला राम जोगी का, जो राजस्थान की राजधानी जयपुर के रावण मंडी स्थित स्लम बस्ती में रहते हैं. भले ही राज्य की राजधानी होने के कारण जयपुर शहर बहुत सारी सुविधाओं से लैस होगा. लेकिन इसी जयपुर में आबाद रावण की मंडी नाम से मशहूर स्लम बस्ती कई बुनियादी सुविधाओं क

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